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Category: आल्हा छंद

आल्हा छंद  ‘सैनिक’

आल्हा छंद ‘सैनिक’ मैं सैनिक निज कर्तव्यों से, कैसे सकता हूँ मुँह मोड़। प्रबल भुजाओं की ताकत से, रिपु दल का दूँगा मुँह तोड़।। मातृभूमि की रक्षा करने, खड़ा रहूँ बन्दूकें तान। कहता है फौलादी

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आल्हा छंद “अग्रवाल”

आल्हा छंद “अग्रदूत अग्रवाल”

अग्रोहा की नींव रखे थे, अग्रसेन नृपराज महान।
धन वैभव से पूर्ण नगर ये, माता लक्ष्मी का वरदान।।

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आल्हा छंद “आलस्य”

आल्हा छंद या वीर छंद
“आलस्य”

कल पे काम कभी मत छोड़ो, आता नहीं कभी वह काल।
आगे कभी नहीं बढ़ पाते, देते रोज काम जो टाल।।
किले बनाते रोज हवाई, व्यर्थ सोच में हो कर लीन।
मोल समय का नहिं पहचाने, महा आलसी प्राणी दीन।।

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आल्हा छंद विधान

आल्हा छंद या वीर छंद

“विधान”

आल्हा छंद या वीर छंद 31 मात्रा प्रति पद का सम पद मात्रिक छंद है। यह चार पदों में रचा जाता है। इसे मात्रिक सवैया भी कहते हैं। इसमें यति16 और 15 मात्रा पर नियत होती है। दो दो या चारों पद समतुकांत होने चाहिए।

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