अनुष्टुप छंद
“गुरु पंचश्लोकी”
सद्गुरु-महिमा न्यारी, जग का भेद खोल दे।
वाणी है इतनी प्यारी, कानों में रस घोल दे।।
गुरु से प्राप्त की शिक्षा, संशय दूर भागते।
पाये जो गुरु से दीक्षा, उसके भाग्य जागते।।
गुरु-चरण को धोके, करो रोज उपासना।
ध्यान में उनके खोकेेे, त्यागो समस्त वासना।।
गुरु-द्रोही नहीं होना, गुरु आज्ञा न टालना।
गुरु-विश्वास का खोना, जग-सन्ताप पालना।।
गुरु के गुण जो गाएं, मधुर वंदना करें।
आशीर्वाद सदा पाएं, भवसागर से तरें।।
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अनुष्टुप छंद विधान: (वर्णिक छंद परिभाषा)
यह छंद अर्धसमवृत्त है । इस के प्रत्येक चरण में आठ वर्ण होते हैं । पहले चार वर्ण किसी भी मात्रा के हो सकते हैं । पाँचवाँ लघु और छठा वर्ण सदैव गुरु होता है । सम चरणों में सातवाँ वर्ण ह्रस्व और विषम चरणों में गुरु होता है। आठवाँ वर्ण संस्कृत में तो लघु या गुरु कुछ भी हो सकता है। संस्कृत में छंद के चरण का अंतिम वर्ण लघु होते हुये भी दीर्घ उच्चरित होता है जबकि हिन्दी में यह सुविधा नहीं है। अतः हिन्दी में आठवाँ वर्ण सदैव दीर्घ ही होता है।
(1) × × × × । ऽ ऽ ऽ, (2) × × × × । ऽ । ऽ
(3) × × × × । ऽ ऽ ऽ, (4) × × × × । ऽ । ऽ
उपरोक्त वर्ण विन्यास के अनुसार चार चरणों का एक छंद होता है। सम चरण (2, 4) समतुकांत होने चाहिए। रोचकता बढाने के लिए चाहें तो विषम चरण (1, 3) भी समतुकांत कर सकते हैं पर आवश्यक नहीं।
गुरु की गरिमा भारी, उसे नहीं बिगाड़ना।
हरती विपदा सारी, हितकारी प्रताड़ना।।============
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
गुरु देव को समर्पित बहुत सुंदर श्लोक।
प्रतिक्रिया का हृदयतल से आभार।
कठिन अनुष्टुप छन्द में गुरु की महिमा का बखान अद्भुत हुआ है भैया।
बहुत बधाई।
शुचि बहन बहुत बहुत धन्यवाद।