अवतार छंद,
‘गोरैया’
फुर फुर गोरैया उड़े, मदमस्त सी लगे।
चीं चीं चीं का शोर कर, नित भोर वो जगे।।
मृदु गीत सुनाती लहे, वो पवन सी बहे।
तुम दे दो दाना मुझे, वो चहकती कहे।।
चितकबरा तन, पर घने, लघु फुदक सोहती।
अनुपम पतली चोंच से, जन हृदय मोहती।।
छत, नभ, मुँडेर नापती, नव जोश से भरी।
है धैर्य, शौर्य से गढ़ी, बेजोड़ सुंदरी।।
ले आती तृण, कुश उठा, हो निडर भीड़ में।
है कार्यकुशलता भरी, निर्माण नीड़ में।।
मिलजुल कर रहती सदा, व्यवहार की धनी।
घर-आँगन चहका रही, मृदु भाव से सनी।।
सुन मेरी प्यारी सखी, तुम सुखद भोर हो।
निज आँगन समझो इसे, घर यही ठोर हो।।
मैं दाना दूँगी तुम्हें, जल नित्य ही भरूँ।
मत जाना दर से कभी, ‘शुचि’ विनय मैं करूँ।।
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अवतार छंद विधान-
अवतार छंद 23 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।
यह 13 और 10 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहती है। दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2 2222 12, 2 3 212
चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है, किंतु आदि द्विकल एवं अंत 212 (रगण) अनिवार्य है। अठकल के नियम अनुपालनिय है।
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शुचिता अग्रवाल,’शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
नन्ही गोरैया पर बहुत सुंदर कविता हुई है।
हार्दिक आभार।
शुचिता बहन अवतार छंद में प्यारी चिड़िया गोरैया पर बहुत सुंदर रचना।
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार।