Categories
Archives

अहीर छंद / अभीर छंद

“प्रदूषण”

बढ़ा प्रदूषण जोर।
इसका कहीं न छोर।।
संकट ये अति घोर।
मचा चतुर्दिक शोर।।

यह भीषण वन-आग।
हम सब पर यह दाग।।
जाओ मानव जाग।
छोड़ो भागमभाग।।

मनुज दनुज सम होय।
मर्यादा वह खोय।।
स्वारथ का बन भृत्य।
करे असुर सम कृत्य।।

जंगल किए विनष्ट।
सहता है जग कष्ट।।
प्राणी सकल कराह।
भरते दारुण आह।।

धुआँ घिरा विकराल।
ज्यों उगले विष व्याल।।
जकड़ जगत निज दाढ़।
विपदा करे प्रगाढ़।।

दूषित नीर समीर।
जंतु समस्त अधीर।।
संकट में अब प्राण।
उनको कहीं न त्राण।।

प्रकृति-संतुलन ध्वस्त।
सकल विश्व अब त्रस्त।।
अन्धाधुन्ध विकास।
आया जरा न रास।।

विपद न यह लघु-काय।
शापित जग-समुदाय।।
मिलजुल करे उपाय।
तब यह टले बलाय।।
==============

(मात्रिक छंद परिभाषा) <– लिंक

अहीर छंद / अभीर छंद विधान –

अहीर छंद जो कि अभीर छंद के नाम से भी जाना जाता है, ११ मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत जगण (121) से होना आवश्यक है। यह रौद्र जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। इन 11 मात्राओं का विन्यास ठीक दोहा छंद के 11 मात्रिक सम चरण जैसा है बस 8वीं मात्रा सदैव लघु रहे। दोहा छंद के सम चरण का कल विभाजन है:
अठकल + 3 (ताल यानी 21)

अठकल में 2 चौकल हो सकते हैं। अठकल और चौकल के सभी नियम अनुपालनीय हैं। अहीर छंद में अठकल की निम्न संभावनाएँ हो सकती हैं।
3,3,11
2, जगण,11
3, जगण, 1
4,2,11
4,3,1*

*****************

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

4 Responses

  1. अहीर छंद में प्रदूषण पर बहुत ही सारगर्भित रचना हुई है। इतने विस्तार से आपने विषय वस्तु को बांधे रखा है जो अद्वितीय है। सार्थक सृजन की हृदय से बधाई आपको।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *