आँसू छंद
“कल और आज”
भारत तू कहलाता था, सोने की चिड़िया जग में।
तुझको दे पद जग-गुरु का, सब पड़ते तेरे पग में।
तू ज्ञान-ज्योति से अपनी, संपूर्ण विश्व चमकाया।
कितनों को इस संपद से, तूने जीना सिखलाया।।1।।
तेरी पावन वसुधा पर, नर-रत्न अनेक खिले थे।
बल, विक्रम और दया के, जिनको गुण खूब मिले थे।
अपनी मीठी वाणी से, वे जग मानस लहराये।
सन्देश धर्म का दे कर, थे दया-केतु फहराये।।2।।
प्राणी में सम भावों की, वीणा-लहरी गूँजाई।
इस जग-कानन में उनने, करुणा की लता खिलाई।
अपने इन पावन गुण से, तू जग का गुरु कहलाया।
जग एक सूत्र में बाँधा, अपना सम्मान बढ़ाया।।3।।
तू आज बता क्यों भारत, वह गौरव भुला दिया है।
वह भूल अतीत सुहाना, धारण नव-वेश किया है।
तेरी दीपक की लौ में, जिनके थे मिटे अँधेरे।
वे सिखा रहें अब तुझको, बन कर के अग्रज तेरे।।4।।
तूने ही सब से पहले, उनको उपदेश दिया था।
तू ज्ञान-भानु बन चमका, जग का तम दूर किया था।
वह मान बड़ाई तूने, अपने मन से बिसरा दी।
वह छवि अतीत की पावन, उर से ही आज मिटा दी।।5।।
तेरे प्रकाश में जग का, था आलोकित हृदयांगन।
तूने ही तो सिखलाया, जग-जन को वह ज्ञानांकन।
वह दिव्य जगद्गुरु का पद, तू पूरा भूल गया है।
हर ओर तुझे अब केवल, दिखता सब नया नया है।।6।।
अपना आँचल फैला कर, बन कर के दीन भिखारी।
थे कृपा-दृष्टि के इच्छुक, जो जग-जन कभी तिहारी।
अब दया-दृष्टि का उनकी, रहता सदैव तू प्यासा।
क्या भान नहीं है इसका, कैसे पलटा यह पासा।।7।।
अपने रिवाज सब छोड़े , बिसराया खाना, पीना।
त्यज वेश और भूषा तक, छोड़ा रिश्तों में जीना।
निज जाति, वर्ण अरु कुल का, मन में अभिमान न अब है।
अपनाना रंग विदेशी, तूने तो ठाना सब है।।8।।
कण कण में व्याप्त हुई है, तेरे भीषण कृत्रिमता।
बस आज विदेशी की ही, तुझ में दिखती व्यापकता।
ये दृष्टि जिधर को जाती, हैं रंग नये ही दिखते।
नव रंग रूप ये तेरी, हैं भाग्य-रेख को लिखते।।9।।
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आँसू छंद विधान –
आँसू छंद प्रति पद 28 मात्रा का सम पद मात्रिक छंद है। छंद का पद 14 – 14 मात्रा के दो यति खण्डों में विभक्त रहता है। दो दो पद में सम तुकांतता बरती जाती है। मात्रा बाँट प्रति चरण:-
प्रथम दो मात्राएँ सदैव द्विकल के रूप में रहती हैं जिसमें 11 या 2 दोनों रूप मान्य हैं। बची हुई 12 मात्रा में चौकल अठकल की निम्न तीन संभावनाओं में से कोई भी प्रयोग में लायी जा सकती है।
तीन चौकल,
चौकल + अठकल,
अठकल + चौकल
मानव छंद में किंचित परिवर्तन कर प्रसाद जी ने पूरा ‘आँसू’ खंड काव्य इस छंद में रचा है, इसलिए इस छंद का नाम ही आँसू छंद प्रचलित हो गया है।
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मात्रिक छंद की जानकारी की लिंक –> (मात्रिक छंद परिभाषा)
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
आँसू छंद की इस कविता में आपने भारत के गौरवशाली अतीत की याद दिलाते हुये बताया है कि अपनी संस्कृति और परंपराओं पर अटल रहने में ही आपका संसार में मान है।
आपकी.मधुर प्रतिक्रिया का आत्मिक धन्यवाद।
आँसू छंद में भारत के बदलते परिवेश पर अपने भावों को अति मोहक जामा पहनाया है। यथार्थ पर कटाक्ष करती विचारणीय स्थिति पर अति प्रभावशाली भाषा शैली का प्रयोग करते हुए आपने पाठक वृन्द के मस्तिष्क पर अपने लेखन की अमिट छाप अंकित की है।
आपकी रचनाओं को पढ़ने का सौभाग्य पाकर आह्लादित हूँ।
आप मेरे प्रेरणा स्त्रोत हो।
शुचिता बहन तुम्हारी मधुर संस्तुति से भारत के स्वर्णिम अतीत की गौरव गाथा को जन जन तक पहुँचाने का मेरा प्रयास सार्थक हुआ। बहुत बहुत धन्यवाद।