आल्हा छंद विधान / वीर छंद विधान
आल्हा छंद वीर छंद के नाम से भी प्रसिद्ध है जो 31 मात्रा प्रति पद का सम पद मात्रिक छंद है। यह चार पदों में रचा जाता है। इसे मात्रिक सवैया भी कहते हैं। इसमें यति 16 और 15 मात्रा पर नियत होती है। दो दो या चारों पद समतुकांत होने चाहिए।
16 मात्रा वाले चरण का विधान और मात्रा बाँट ठीक चौपाई छंद वाली है। 15 मात्रिक चरण का अंत ताल यानि गुरु लघु से होना आवश्यक है। तथा बची हुई 12 मात्राएँ तीन चौकल के रूप में हो सकती हैं या फिर एक अठकल और एक चौकल हो सकती हैं। चौकल और अठकल के सभी नियम लागू होंगे।
’यथा नाम तथा गुण’ की उक्ति को चरितार्थ करते आल्हा छंद या वीर छंद के कथ्य अक्सर ओज भरे होते हैं और सुनने वाले के मन में उत्साह और उत्तेजना पैदा करते हैं। जनश्रुति इस छंद की विधा को यों रेखांकित करती है –
आल्हा मात्रिक छन्द, सवैया, सोलह-पन्द्रह यति अनिवार्य।
गुरु-लघु चरण अन्त में रखिये, सिर्फ वीरता हो स्वीकार्य।
अलंकार अतिशयताकारक, करे राइ को तुरत पहाड़।
ज्यों मिमयाती बकरी सोचे, गुँजा रही वन लगा दहाड़।
परन्तु इसका यह अर्थ भी नहीं कि इस छंद में वीर रस के अलावा अन्य रस की रचना नहीं रची जा सकती।
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भारत के जवानों पर कुछ पंक्तियाँ।
संभाला है झट से मोर्चा, हुआ शत्रु का ज्योंही भान।
उछल उछल के कूद पड़े हैं, भरी हुई बन्दूकें तान।
नस नस इनकी फड़क उठी है, करने रिपु का शोणित पान।
झपट पड़े हैं क्रुद्ध सिंह से, भारत के ये वीर जवान।।
रिपु मर्दन का भाव भरा है, इनकी आँखों में अति क्रूर।
गर्ज मात्र ही सुनकर जिनकी, अरि का टूटे सकल गरूर।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, दृढ़ निश्चय कर जो तैयार।
दुश्मन के छक्के छुट जायें, सुन कर के उनकी हूँकार।।
(बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ रचित)
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
इस लेख से आल्हा छंद की बारे में विस्तार से जाना जा सकता है।
बहुत बहुत धन्यवाद।