आल्हा छंद
‘सैनिक’
मैं सैनिक निज कर्तव्यों से, कैसे सकता हूँ मुँह मोड़।
प्रबल भुजाओं की ताकत से, रिपु दल का दूँगा मुँह तोड़।।
मातृभूमि की रक्षा करने, खड़ा रहूँ बन्दूकें तान।
कहता है फौलादी सीना, मैं सैनिक हूँ अति बलवान।।
डटा रहूँगा सीमा पर मैं, खुद भागेंगे अरि रण छोड़।
प्रबल भुजाओं की ताकत से, रिपु दल का दूँगा मुँह तोड़।।
अरि शोणित का हूँ मैं प्यासा, करूँ पान का अथक प्रयास।
थर्र थर्र थर्रा दूँ रिपु दल, रग-रग को इसका अभ्यास।
साथ खड़ी है मेरे तनकर, भारत की सेना बेजोड़।
प्रबल भुजाओं की ताकत से, रिपु दल का दूँगा मुँह तोड़।।
मेरे भारतवासी सुनलो, मैं घाटी से रहा पुकार।
अर्थव्यवस्था अरि की तोड़ो, एकजूट हो करो प्रहार।।
किसमें कितनी देशभक्ति है, यही लगालो अब सब होड़।
प्रबल भुजाओं की ताकत से, रिपु दल का दूँगा मुँह तोड़।।
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया,असम
आल्हा छंद विधान
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
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वीर रस से ओतप्रोत आल्हा छंद में भारत के सैनिकों पर प्यारी कविता।
बहुत बहुत आभार आपका भैया।
आल्हा छंद में सैनिक पर बहुत प्यारी कविता।
हार्दिक आभार आपका।