इंदिरा छंद / राजहंसी छंद
“पथिक”
तमस की गयी ये विभावरी।
हृदय-सारिका आज बावरी।।
वह उड़ान उन्मुक्त है भरे।
खग प्रसुप्त जो गान वो करे।।
अरुणिमा रही छा सभी दिशा।
खिल उठा सवेरा, गयी निशा।।
सतत कर्म में लीन हो पथी।
पथ प्रतीक्ष तेरे महारथी।।
अगर भूत तेरा डरावना।
पर भविष्य आगे लुभावना।।
रह न तू दुखों को विचारते।
बढ़ सदैव राहें सँवारते।।
कर कभी न स्वीकार हीनता।
जगत को दिखा तू न दीनता।।
सजग तू बना ले शरीर को।
‘नमन’ विश्व दे कर्म वीर को।।
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इंदिरा छंद / राजहंसी छंद विधान :-
“नररलाग” से छंद लो तिरा।
मधुर ‘राजहंसी’ व ‘इंदिरा’।।
“नररलाग” = नगण रगण रगण + लघु गुरु
111 212 212 12,
चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत।
राजहंसी छंद के नाम से भी यह छंद प्रसिद्ध है।
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वर्णिक छंद के विषय में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें —-> (वर्णिक छंद परिभाषा)
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
इंदिरा छंद का बहुत ही सुंदर विश्लेषण सराहनीय है। भविष्य में आप ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहें। धन्यवाद।
आदरणीय सुनील यादव जी आपका कविकुल वेब साइट में स्वागत है। आपकी नव उत्साह का संचार करती प्रतिक्रिया का हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ।
इंदिरा छंद में बहुत ही सुंदर संदेशप्रद रचना है।
सही कहा आपने की भूत यदि निराशजनक परन्तु भविष्य लुभावना लगे तो तुरंत हमें आगे बढ़ना चाहिए न कि भूत के बारे में सोचकर बैठे रहना चाहिए।
अति उत्तम सृजन भैया।
शुचिता बहन कविता के केंद्र भाव तुम तक संप्रेषित हुए और तुम्हारी सरस टिप्पणी प्राप्त हुई, जिसके लिए मैं हार्दिक धन्यवाद व्यक्त करता हूँ।
इंदिरा छंद में जो बीत गया उसे भूल आगे बढने का बहुत सुंदर संदेश देती कविता।
आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया का अतिसय आभार एवं धन्यवाद।