उपमान छंद
‘शिवा’
हे सोमेश्वर हे शिवा, भोले भंडारी।
शीश चन्द्रमा सोहता, जटा गंगधारी।।
अंग भुजंग विराजते, गल मुंडन माला।
कर त्रिशूल डमरू धरे, तन पर मृग छाला।।
भष्म रमाये देह पर, अंग-अंग सोहे।
औघड़दानी आपके, कुंडल मन मोहे।।
भांग, धतूरा, आक फल, बिल्व पत्र भाये।
वृषभ सवारी शिव करे, जन मन हरषाये।।
हे गिरिजापति आप हो, कैलाशी वासी।
स्कंद गणेश समान सुत, सब अघ के नाशी।।
तालमेल परिवार में, शिव ने सिखलाया।
सिंह, बैल, अहि, मोर का, अपनापन भाया।।
मन मृदंग की ताल पर, शिव-शिव जो बोले।
व्याधि मिटे जप नित करें, नमो-नमो भोले।।
गुणागार ओंकार को, वंदन है मेरा।
अपने में मुझको समा, सब कुछ है तेरा।।
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उपमान छंद विधान-
उपमान छंद 23 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2222 212, 2222S
13 + 10 = 23 मात्राएँ
दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं। इस छंद का अन्य नाम दृढपद भी है।
अंत में दो गुरु रखने से कर्ण मधुर होता है वैसे अंत एक गुरु की ही बाध्यता है।
चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
हर हर महादेव।
बहुत सुंदर वंदना।
हार्दिक आभार।
शुचिता बहन उपमान छंद में महादेव शिव की बहुत ही मनोहर स्तुति।
भैया, जो कुछ भी सीखा आपसे ही सीखा है और अब आप ही को सब समर्पित है। मेरा उत्साहवर्धन करने हेतु आभारी हूँ।