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उड़ियाना छंद

“विरह”

क्यों री तू थमत नहीं, विरह की मथनिया।
मथत रही बार बार, हॄदय की मटकिया।।
सपने में नैन मिला, हँसत है सजनिया।
छलकावत जाय रही, नेह की गगरिया।।

गरज गरज बरस रही, श्यामली बदरिया।
झनकारै हृदय-तार, कड़क के बिजुरिया।।
ऐसे में कुहुक सुना, वैरन कोयलिया।
विकल करे कबहु मिले, सजनी दुलहनिया।।

तेरे बिन शुष्क हुई, जीवन की बगिया।
बेसुर में बाज रही, बैन की मुरलिया।।
सुनने को विकल श्रवण, तेरी पायलिया।
तेरी ही बाट लखे, सूनी ये कुटिया।।

विरहा की आग जले, कटत न अब रतिया।
रह रह मन उठत हूक, धड़कत है छतिया।।
‘नमन’ तुझे भेज रहा, अँसुवन लिख पतिया।
बेगी अब आय मिलो, सुन मन की बतिया।।
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उड़ियाना छंद विधान –  (मात्रिक छंद परिभाषा)

उड़ियाना छंद 22 मात्रा का सम मात्रिक छंद है। यह प्रति पद 22 मात्रा का छंद है। इस में 12,10 मात्रा पर यति विभाजन है। यति से पहले त्रिकल आवश्यक।

मात्रा बाँट :- 6+3+3, 6+1+1+S (2) (त्रिकल के तीनों रूप (21, 12, 111) मान्य। अंत सदैव दीर्घ वर्ण से। चार पद, दो दो पद समतुकांत या चारों पद समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

4 Responses

  1. उड़ियाना छंद में विरह व्यथा का बहुत ही मार्मिक चित्रण आपने अपनी रचना में किया है।

  2. उड़ियाना जैसी मधुर मात्रिक छंद में विरह वेदना को बहुत ही हृदयस्पर्शी भावों एवं शब्दों का जामा पहनाया है भैया।
    इस प्रभावशाली रचना हेतु दिल से बधाई आपको।

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