कज्जल छंद
“समय का हेर-फेर”
समय-समय का हेर-फेर,
आज सेर कल सवा सेर।
जग में चलती एक रीत,
जाय अँधेरी रात बीत।
रहना छोड़ो अस्त-व्यस्त,
जीवन करलो खूब मस्त।
प्यारे सब में देख प्रीत,
गाओ मन से प्रेम गीत।
दुख का आता एक मोड़,
सुख जब जाता हाथ छोड़।
हँसना-रोना साथ-साथ,
डोर जगत की राम हाथ।
रखना मन में खूब जोश,
किंतु न खोना कभी होश।
छोड़ समय पर जीत-हार,
सब बातों का यही सार।
◆◆◆◆◆◆◆
कज्जल छंद विधान (मात्रिक छंद परिभाषा)
यह 14 मात्राओं का सम मात्रिक छंद है। दो दो चरण या चारों चरण समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
अठकल+त्रिकल+गुरु और लघु=14 मात्राएँ।
(अठकल दो चौकल या 3-3-2 हो सकता है, त्रिकल 21, 12, 111 हो सकता है तथा द्विकल 2 या 11 हो सकता है।)
●●●●●●●
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
अति उत्तम
मन अभिभूत हुआ।
बिल्कुल सही है, ‘समय बड़ा बलवान’। इस भाव पर बहुत सुंदर रचना।
हार्दिक आभार आपका।
शुचिता बहन बीते समय का रोना रोनेवालों को बहुत सुंदर सीख देती कज्जल छंद की कविता। तुम्हारी नयी नयी छंदों पर रचनाओं की कड़ी में एक और मील का पत्थर।
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार भैया।
आपका मार्गदर्शन एवं प्रतिक्रिया लेखनी को हमेशा लिखते रहने को प्रेरित करता है।