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कज्जल छंद

“समय का हेर-फेर”

समय-समय का हेर-फेर,
आज सेर कल सवा सेर।
जग में चलती एक रीत,
जाय अँधेरी रात बीत।

रहना छोड़ो अस्त-व्यस्त,
जीवन करलो खूब मस्त।
प्यारे सब में देख प्रीत,
गाओ मन से प्रेम गीत।

दुख का आता एक मोड़,
सुख जब जाता हाथ छोड़।
हँसना-रोना साथ-साथ,
डोर जगत की राम हाथ।

रखना मन में खूब जोश,
किंतु न खोना कभी होश।
छोड़ समय पर जीत-हार,
सब बातों का यही सार।
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कज्जल छंद विधान (मात्रिक छंद परिभाषा)

यह 14 मात्राओं का सम मात्रिक छंद है। दो दो चरण या चारों चरण समतुकांत होते हैं।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
अठकल+त्रिकल+गुरु और लघु=14 मात्राएँ।
(अठकल दो चौकल या 3-3-2 हो सकता है, त्रिकल 21, 12, 111 हो सकता है तथा द्विकल 2 या 11 हो सकता है।)
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

6 Responses

    1. हार्दिक आभार आपका।

  1. शुचिता बहन बीते समय का रोना रोनेवालों को बहुत सुंदर सीख देती कज्जल छंद की कविता। तुम्हारी नयी नयी छंदों पर रचनाओं की कड़ी में एक और मील का पत्थर।

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