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कमंद छंद

“परिवार”

सबसे प्यारा है परिवार, जहाँ है खुशियाँ जग की सारी।
रहते मिलजुल हम सब साथ, यही है जीवन की फुलवारी।।
है जीवन का यह आधार, इसी ने रीति-नीति सिखलाई।
जीने की सब राहें नेक, इसी ने हमको है दिखलाई।।

आशाओं का उज्वल व्योम, उड़ानें लक्ष्यों की हम लेते।
अगर किसी में कम सामर्थ्य, सहारा मिलकर परिजन देते।।
विपदाओं की आये बाढ, हमारे काम स्वजन ही आते।
बीच भँवर में अटकी नाव, सहायक बनते रिश्ते नाते।।

माँ की ममता ठंडी छाँव, बिछौना आँचल का कर डाले।
संतानों पर सब कुछ वार, पिता दुख सहकर भी घर पाले।।
दादा दादी ने संस्कार, सिखाये अनुभव कर के सारे।
भाई हो जब अपने साथ, अनेकों दुश्मन हमसे हारे।।

ये रिश्ते हैं प्रभु की देन, सँजोकर रखना धर्म हमारा।
इन्हें निभाना पहला कर्म, लुटादें तन, मन, धन हम सारा।।
आपस में मृदु हो व्यवहार, यही धन जीवन भर का होता।
आदर, ममता, करुणा, त्याग, न हो तो घर भी गरिमा खोता।।
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कमंद छंद विधान – (मात्रिक छंद परिभाषा) <–लिंक

कमंद छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है। चार पदों के इस छंद में दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
अठकल + छक्कल + लघु,  यगण(122) +अठकल + गुरु गुरु (SS)
2222 2221, 122 2222 22 (SS)

छक्कल (3+3 या 4+2 या 2+4) हो सकते हैं।
अठकल में (4+4 या 3+3+2 दोनों हो सकते हैं।)
अंत में दो गुरु का होना अनिवार्य है।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

4 Responses

  1. सच है माता, पिता, दादा, दादी, भाई, बहन से भरे पुरे परिवार के साथ रहने का आनंद ही अलग है।

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