कामरूप छंद / वैताल छंद
“आज की नारी”
नारी न अबला, पूर्ण सबला, हो गई है आज।
वह भव्यता से, दक्षता से, सारती हर काज।।
हर क्षेत्र में रत, कर्म में नत, आज की ये नार।
शासन सँभाले, नभ खँगाले,सामती घर-बार।।
होती न विचलित, वो समर्पित, आत्मबल से चूर।
अवरोध जग के, कंट मग के, सब करे वह दूर।।
धर आस मन में, स्फूर्ति तन में, धैर्य के वह साथ।
आगे बढ़े नित, चित्त हर्षित, रख उठा कर माथ।।
परिचारिका बन, जीत ले मन, कर सके हर काम।
जग से जुड़ी वह, ताप को सह, अरु कमाये नाम।।
जो भी करे नर, वह सके कर, सद्गुणों की खान।
सच्ची सहायक, मोद दायक, पूर्ण निष्ठावान।।
पीड़ित रही हो, दुख सही हो, खो सदा अधिकार।
हरदम दिया है, सब किया है, फिर बनी क्यों भार।।
कहता ‘नमन’ यह, क्यों दमन सह, अब रहें सब नार।
शोषण तुम्हारा, शर्मशारा, ये हमारी हार।।
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लिंक :- (मात्रिक छंद परिभाषा)
कामरूप छंद विधान / वैताल छंद विधान –
कामरूप छंद जो कि वैताल छंद के नाम से भी जाना जाता है, 26 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है। इसका पद 9 मात्रा, 7 मात्रा और 10 मात्रा के तीन यति खण्डों में विभक्त रहता है। इस छंद के प्रत्येक चरण की मात्रा बाँट निम्न प्रकार से है :-
(1) प्रथम यति- 2 + 3 (केवल ताल) + 4 = 9 मात्रा। इसका वर्णिक विन्यास 22122 है।
(2) द्वितीय यति- इसका वर्णिक विन्यास 2122 = 7 मात्रा है।
(3) तृतीय यति- इसका वर्णिक विन्यास 2122 21 = 10 मात्रा है। इसको 1222 21 रूप में भी रखा जा सकता है, पर चरण का अंत सदैव ताल (21) से होना आवश्यक है।
22122, 2122, 2122 21 (अत्युत्तम)। चूंकि यह छंद एक मात्रिक छंद है अतः इसमें 2 (दीर्घ वर्ण) को 11 (दो लघु वर्ण) करने की छूट है। यह चार पद का छंद है जिसके दो दो पद समतुकांत या चारों पद समतुकांत रहते हैं। आंतरिक यति भी समतुकांत हो तो और अच्छा परन्तु जरूरी भी नहीं।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
आज की नारी की प्रगति यात्रा दर्शाती बहुत प्यारी रचना।
आपकी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया का आत्मिक धन्यवाद।
कामरूप छंद में नारी के शौर्य की अति सुंदर गाथा एवं साथ ही समाज से उसकी अवहेलना करने पर विचारणीय प्रश्न अंकित किया है।
नारी की प्रगति में रोड़ा बनकर उसे आगे बढ़ने से रोकने पर हम सबकी हार है।
अद्भुत सृजन भाव एवं सुंदर छंद निर्वहन हुआ है।
शुचिता बहन.तुम्हारी हृदय उत्फुल्लित करती मधुर प्रतिक्रिया से गदगद हूँ और आत्मिक धन्यवाद व्यक्त करता हूँ।