कामरूप /वैताल छंद
‘माँ की रसोई’
माँ की रसोई, श्रेष्ठ होई, है न इसका तोड़।
जो भी पकाया, खूब खाया, रोज लगती होड़।।
हँसकर बनाती, वो खिलाती, प्रेम से खुश होय।
था स्वाद मीठा, जो पराँठा, माँ खिलाती पोय।।
खुशबू निराली, साग वाली, फैलती चहुँ ओर।
मैं पास आती, बैठ जाती, भूख लगती जोर।।
छोंकन चिरौंजी, आम लौंजी, माँ बनाती स्वाद।
चाहे दही हो, छाछ ही हो, वह रहे नित याद।।
मैं रूठ जाती, वो मनाती, भोग छप्पन लाय।
सीरा कचौरी या पकौड़ी, सोंठ वाली चाय।।
चावल पकाई, खीर लाई, तृप्त मन हो जाय।
मुझको खिलाकर, बाँह भरकर, माँ रहे मुस्काय।।
चुल्हा जलाती, फूँक छाती, नीर झरते नैन।
लेकिन न थकती, काम करती, और पाती चैन।।
स्वादिष्ट खाना, वो जमाना, याद आता आज।
उस सी रसोई, है न कोई, माँ तुम्ही सरताज।।
कामरूप छंद विधान – https://kavikul.com/कामरूप-छंद-आज-की-नारी
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
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वाह्ह …’ माँ की रसोई ‘ .. बहुत सुंदर भाव संकलित किये हैं बधाई..
लेकिन खड़ी बोली में…’तोय’, ‘पोय’ , ‘होई’, ‘लाय’ ‘मुस्काय’ जैसे देशज/अपभ्रंश शब्दों ने रचना की मोहकता कम कर दी है..अन्यथा माँ की रसोई बहुत स्वादिष्ट बनी है ।
ऋतुराज जी, कविकुल पर आपने रचना को पढा,सराहा, उत्तम सुझाव दिए जिसके लिए हृदय से आपका आभार व्यक्त करती हूँ।
वाह मां की रसोई की सोंधी गंध रचना से मिल रही है।
आपका हार्दिक आभार।
वाह शुचिता बहन कामरूप छंद में माँ के हाथ की बनी मधुर रसोई के कई रसों का आस्वादन कराती सरस रचना।
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आपका भैया।