‘मेरा मन’
कुकुभ छंद गीत
जब-जब आह्लादित होता मन, गीत प्रणय के गाती हूँ,
खुशियाँ लेकर आये जो क्षण, फिर उनको जी जाती हूँ।
यादों की खुश्बू भीनी सी, बचपन उड़ती परियों सा,
यौवन चंचल भँवरे जैसा, गुड़ियों की ओढ़नियों सा।
पलकें मंद-मंद मुस्काकर, पल-पल में झपकाती हूँ।
जब-जब आह्लादित होता मन, गीत प्रणय के गाती हूँ।
कहने को तो प्रौढ़ हुई पर, मन भोला सा बच्चा है,
चाहे दुनिया झूठी ही हो, खुश होना तो सच्चा है।
आशाओं के दीप लिये फिर, मैं नवजीवन पाती हूँ,
जब-जब आह्लादित होता मन, गीत प्रणय के गाती हूँ।
माना अब मिलना मुश्किल है, कुछ साथी जो मेरे थे,
वो ही दिन के बने उजाले, वो सपनों को घेरे थे।
गाँवों से शहरों की दूरी, पल में तय कर आती हूँ,
जब-जब आह्लादित होता मन, गीत प्रणय के गाती
हूँ।
प्रेम डोर में सब रिश्तों की, माला एक पिरोती हूँ।
नेहल सपनों की बाहों में, हर्षित मन से सोती हूँ।।
मैं अपनी खुशियों का परचम, प्रतिदिन ही फहराती हूँ।
जब-जब आह्लादित होता मन, गीत प्रणय के गाती हूँ।
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शुचिता अग्रवाल “शुचिसंदीप”
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
बहुत सुन्दर गीत लिखा है।
उत्साहवर्धन हेतु आभार आपका।
शुचिता बहन कुकुभ छंद में बहुत प्यारा गीत हुआ है।
स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु अतिशय आभार आपका।