कुण्डलिया छंद “विधान”
कुण्डलिया छंद दोहा छंद और रोला छंद के संयोग से बना विषम छंद है। इस छंद में ६ पद होते हैं तथा प्रत्येक पद में २४ मात्राएँ होती हैं। यह छंद दो छंदों के मेल से बना है जिसके पहले दो पद दोहा छंद के तथा शेष चार पद रोला छंद से बने होते हैं।
दोहा छंद एक अर्द्ध समपद छंद है। इसका हर पद यति चिन्ह द्वारा दो चरणों में बँटा होता है और दोनों चरणों का विधान एक दूसरे से अलग रहता है इसीलिए इसकी संज्ञा अर्द्ध समपद छंद है। इस प्रकार दोहा छंद के दोनों दल में चार चरण होते हैं। इसके प्रथम एवं तृतीय चरण यानी विषम चरण १३-१३ मात्राओं के तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण यानी सम चरण ११-११ मात्राओं के होते हैं।
कुण्डलिया छंद में दोहे का चौथा चरण रोला छंद के प्रथम चरण में सिंहावलोकन की तरह यथावत दोहरा दिया जाता है। रोला छंद के प्रत्येक पद में २४ मात्राएँ होती हैं। चूँकि दोहे का चौथा चरण कुण्डलिया छंद में रोला के प्रथम चरण में यथावत रख दिया जाता है इसलिए इस छंद में रोला छंद के चारों पदों की सम रूपता बनाये रखने के लिए रोला के चारों विषम चरणों की यति ११वीं मात्रा पर रखनी आवश्यक है, साथ ही इस चरण का अंत भी ताल यानी गुरु लघु से होना आवश्यक है।
वैसे तो रोला छंद की मात्रा बाँट तीन अठकल की है पर कुण्डलिया छंद में रोला की प्रथम यति ताल अंत (21) के साथ ११ मात्रा पर सुनिश्चित है जिसकी मात्रा बाँट ८-३(गुरु लघु) है। अतः बाकी बची १३ मात्राएँ केवल ३-२-८ की मात्रा बाँट में ही हो सकती हैं क्योंकि रोला छंद का दूसरा अठकल केवल ३-३-२ में ही विभक्त होगा। शायद इसी कारण से इसी मात्रा बाँट में रोला छंद आजकल रूढ हो गया है।
कुण्डलिया छंद का प्रारंभ जिस शब्द या शब्द-समूह से होता है, छंद का अंत भी उसी शब्द या शब्द-समूह से होता है। सोने में सुहागा तब है जब कुण्डलिया के प्रारंभ का और अंत का शब्द एक होते हुए भी दोनों जगह अलग अलग अर्थ रखता हो। साँप की कुण्डली की तरह रूप होने के कारण ही इसका नाम कुण्डलिया पड़ा है। मेरी एक स्वरचित कुण्डलिया:-
*कुण्डलिया छंद* (चौपाल)
धोती कुर्ता पागड़ी, धवल धवल सब धार।
सुड़क रहे हैं चाय को, करते गहन विचार।।
करते गहन विचार, किसी की शामत आई।
बैठे सारे साथ, गाँव के बूढ़े भाई।।
झगड़े सब निपटाय, समस्या सब हल होती।
अद्भुत यह चौपाल, भेद जो सब ही धोती।।
*** *** ***
मात्रिक छंद परिभाषा <— मात्रिक छंद की जानकारी की लिंक
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
आपने कुण्डलिया छंद का पूर्ण विधान बहुत समझा कर दिया है, जिससे नये लिखने वाले जरूर लाभान्वित होंगे।
आपकी टिप्पणी का हृदयतल से धन्यवाद ज्ञापन करता हूँ।
कुण्डलिया छंद का विधान बहुत ही गहन अध्ययन के बाद आपने लिखा है। अति उत्तम, ज्ञानवर्धक।
आपकी साहित्यिक सेवा सदैव प्रसंसनीय रहेगी।
शुचिता बहन तुम्हारी मन प्रफुल्लित करती प्रतिक्रिया का हार्दिक धन्यवाद।