कुसुमसमुदिता छंद
“शृंगार वर्णन”
गौर वरण शशि वदना।
वक्र नयन पिक रसना।।
केहरि कटि अति तिरछी।
देत चुभन बन बरछी।।
बंकिम चितवन मन को।
हास्य मधुर इस तन को।।
व्याकुल रह रह करता।
चैन सकल यह हरता।।
यौवन उमड़ विहँसता।
ठीक हृदय मँह धँसता।।
रूप निरख मन भटका।
कुंतल लट पर अटका।।
तंग वसन तन चिपटे।
ज्यों फणिधर तरु लिपटे।।
हंस लजत लख चलना।
चित्त-हरण यह ललना।।
============
कुसुमसमुदिता छंद विधान –वर्णिक छंद परिभाषा<–लिंक
“भाननगु” गणन रचिता।
छंदस ‘कुसुमसमुदिता’।।
“भाननगु” = भगण नगण नगण गुरु
(211 111 111 2)
10वर्ण का वर्णिक छंद, 4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत।
****************
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

परिचय
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
मेरा ब्लॉग:-
कुसुमसमुदिता छंद में श्रृंगार का अद्भुत वर्णन किया है ।
बहुत सुंदर उत्कृष्ठ शब्द चयन एवं भाव।
शुचिता बहन मधुर टिप्पणी का हार्दिक धन्यवाद।
इस छंद में सौंदर्य का अनुपम नख सिख वर्णन हुआ है।
आपकी प्रतिक्रिया का हार्दिक धन्यवाद।