कुसुमसमुदिता छंद
“शृंगार वर्णन”
गौर वरण शशि वदना।
वक्र नयन पिक रसना।।
केहरि कटि अति तिरछी।
देत चुभन बन बरछी।।
बंकिम चितवन मन को।
हास्य मधुर इस तन को।।
व्याकुल रह रह करता।
चैन सकल यह हरता।।
यौवन उमड़ विहँसता।
ठीक हृदय मँह धँसता।।
रूप निरख मन भटका।
कुंतल लट पर अटका।।
तंग वसन तन चिपटे।
ज्यों फणिधर तरु लिपटे।।
हंस लजत लख चलना।
चित्त-हरण यह ललना।।
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कुसुमसमुदिता छंद विधान –वर्णिक छंद परिभाषा<–लिंक
“भाननगु” गणन रचिता।
छंदस ‘कुसुमसमुदिता’।।
“भाननगु” = भगण नगण नगण गुरु
(211 111 111 2)
10वर्ण का वर्णिक छंद, 4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
कुसुमसमुदिता छंद में श्रृंगार का अद्भुत वर्णन किया है ।
बहुत सुंदर उत्कृष्ठ शब्द चयन एवं भाव।
शुचिता बहन मधुर टिप्पणी का हार्दिक धन्यवाद।
इस छंद में सौंदर्य का अनुपम नख सिख वर्णन हुआ है।
आपकी प्रतिक्रिया का हार्दिक धन्यवाद।