खरारी छंद
“जलियाँवाला बाग”
उस माटी का, तिलक लगा, जिसमें खुश्बू, आजादी की है।
जलियाँवाला, बाग जहाँ, हुंकारें अरि, बर्बादी की है।।
देखी जग ने, कायरता, हत्या की थी, निर्मम गोरों ने।
उत्पीड़न भय, हिंसा की, तस्वीरें तब, देखी ओरों ने।।
था कायर वो, हत्यारा, डायर जिसने, यह कांड किया था।
आकस्मक आ, खूनी ने, मासूमों को, झट मार दिया था।।
घन-घन चलती, गोली में, कंपित चीखें, चित्कार भरी थी।
बच्चे, बूढ़े, नर-नारी, भोली जनता, तब खूब मरी थी।।
मत पूछो तब, भारत के, लोगों का यह, जीवन कैसा था।
अंग्रेजों का, शासन ज्यूँ, अंगारों पर, चलने जैसा था।
उखड़ेगी कब, अंग्रेजी, शासन की जड़, सबके मन में था।
आक्रोश जोश, बदले का, भाव समाहित, हर जन जन में था।।
अंग्रेजों की, सत्ता को, हिलवाने में, जो बना सहायक।
जलियाँवाला, अति जघन्य, कांड बना था, तब उत्तर दायक।।
ज्वाला फूटी, वीरों में, अंगारे से, आँखों में आये।
आजादी के, बादल तब, भारत भू पर, लहरा कर छाये।।
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खरारी छंद विधान – (मात्रिक छंद परिभाषा) <– लिंक
खरारी छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जिसमें क्रमशः 8, 6, 8, 10 मात्राओं पर यति आवश्यक है। चार चरणों के इस छंद में दो दो या चारों चरण समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2 222, 222, 2222, 2 2222
पहली यति द्विकल (2,11) + छक्कल (3+3 या 4+2 या 2+4)
दूसरी यति छक्कल।
तीसरी यति अठकल।
चौथी यति द्विकल (2,11) + अठकल में (4+4 या 3+3+2 दोनों हो सकते हैं।)
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
जलियाँवाला बाग जैसी अत्याचार की घटनाओं की याद हमैशा जिंदा रखनी चाहिए।
जी अति जघन्य अपराध था यह।
शुचि बहन तुम्हारी रचना ने गोरों के जलियाँवाला बाग के विभत्स काँड को आँखों के आगे जीवंत कर दिया।
अतिशय आभार आपका।