गगनांगना छंद
‘आखा तीज’
शुक्ल पक्ष बैसाख मास तिथि, तीज सुहावनी।
नूतन शुभ आरंभ कार्य की, है फल दायनी।।
आखा तीज नाम से जग में, ये विख्यात है।
स्वयं सिद्ध इसके मुहूर्त को, हर जन ध्यात है।।
त्रेता का आरंभ इसी दिन, हरि युग धर्म का।
अक्षय पात्र मिला पांडव को, था धन कर्म का।।
परशुराम का जन्म हुआ वह, पावन रात थी।
शुरू महाभारत की रचना, शुभ सौगात थी।।
वृंदावन पट श्री विग्रह के, दर्शन को खुले।
कभी सुदामा भी इस दिन ही, हरि से आ घुले।।
भू सरसावन माँ गंगा ने, तिथि थी ये चुनी।
विविध कथाएँ दान-पुण्य के, फल की भी सुनी।।
होते ग्रह अनुकूल सभी ही, हरती आपदा।
धन की वर्षा करती तिथि यह, होता फायदा।।
फल प्रदायिनी मंगलदायक, हिन्दू मान्यता।
मनवांछित शुभ फल है देती, दे आरोग्यता।।
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गगनांगना छंद विधान- (मात्रिक छंद परिभाषा)
गगनांगना छंद 25 मात्राओं का सम मात्रिक छंद है जो 16 और 9 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है। दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2222 2222, 22 S1S (प्रथम यति के दो अठकल का चौपाई छंद वाला ही विधान है।)
चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है, किंतु अंत में रगण (212) आवश्यक है।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
वाह्ह..’आखा तीज’ रचना पढ़कर मज़ा आ गया.. भाव, शब्द संकलन, यति गति, सब कुछ मनोहारी.. शुचिता बहन को बहुत बहुत बधाई..
भाई ऋतुराज जी, आपकी मोहक प्रतिक्रिया पाकर लेखन सफल हुआ।
आपका बहुत बहुत आभार।
आखातीज से जुडी विविधताओं पर प्रकाश डालती सुंदर रचना।
हार्दिक आभार।
शुचिता बहन आखातीज की सर्वांगीण महिमा बखान करती हुई गगनांगना छंद में बहुत सार्थक रचना हुई है।
“शुचिता तुमने रचदी प्यारी, यह गगनांगना।
आखा तीज खिला शुम कर दी, कविकुल आंगना।।”
आपकी हृदय खिलाती प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ।
अतिशय आभार भैया।