गाथ छंद
“वृक्ष-पीड़ा”
वृक्ष जीवन देते हैं।
नाहिं ये कुछ लेते हैं।
काट व्यर्थ इन्हें देते।
आह क्यों इनकी लेते।।
पेड़ को मत यूँ काटो।
भू न यूँ इन से पाटो।
पेड़ जीवन के दाता।
जोड़ लो इन से नाता।।
वृक्ष दुःख सदा बाँटे।
ये न हैं पथ के काँटे।
मानवों ठहरो थोड़ा।
क्यों इन्हें समझो रोड़ा।।
मूकता इनकी पीड़ा।
काटता तु उठा बीड़ा।
बुद्धि में जितने आगे।
स्वार्थ में उतने पागे।।
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गाथ छंद विधान – (वर्णिक छंद परिभाषा)
सूत्र राच “रसोगागा”।
‘गाथ’ छंद मिले भागा।।
“रसोगागा” = रगण, सगण, गुरु गुरु
212 112 22 = 8 वर्ण
चार चरण, दो दो समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

परिचय
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
मेरा ब्लॉग:-
वाह शानदार लेखन।
प्रतिक्रिया का अभिनंदन।
पेडों के दुख को दर्शाती बढ़िया रचना
यशस्वी तुम्हारा आत्मिक धन्यवाद।
जीवनदाता वृक्षों की मूक पीड़ा का बहुत ही मार्मिक वर्णन गाथ वर्णिक छंद में हुआ है।
बहुत ही सुंदर,विचारणीय रचना।
शुचिता बहन तुम्हारी मधुर प्रतिक्रिया का बहुत बहुत धन्यवाद।
मानव के स्वार्थ के आगे वृक्षों, जीवों की पीड़ा क्या महत्व रखती है। अंधाधुंध जंगलों की कटाई पर बहुत मार्मिक रचना।
आपकी मधुर टिप्पणी का हार्दिक आभार।