गोपी छंद
'बनाकर लक्ष्य बढ़ो आगे'
तप्त सूरज की किरणें हों,
अँधेरे चाहे जितने हों,
सवेरा है तब जब जागे,
बनाकर लक्ष्य बढ़ो आगे।
प्रेरणा का दामन पकड़े,
हौंसलों की हिम्मत जकड़े,
राह में रोड़े जो आये,
हटाते चल बिन घबराये।
निखरने को पड़ता तपना,
आँख में पकड़ रखो सपना।
धीर धर कष्ट सभी सहना
चोट खा स्वर्ण बने गहना।
सुगम जो मार्ग दिखाते हैं,
वही नायक कहलाते हैं,
कार्य में उत्सुकता होती,
श्रेष्ठ जिसमें दृढ़ता होती।
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गोपी छंद विधान- (मात्रिक छंद)
यह मापनी आधारित प्रत्येक चरण पंद्रह मात्राओं का मात्रिक छन्द है।
आदि में त्रिकल (21 या 12),अंत में गुरु/वाचिक(२२ श्रेष्ठ)अनिवार्य है।
आरम्भ में त्रिकल के बाद समकल, बीच में त्रिकल हो तो समकल बनाने के लिए एक और त्रिकल आवश्यक होता है।
इसका वाचिक भार निम्न है-
3(21,12)2 2222 2(s) -15 मात्राएँ।
चूंकि यह मात्रिक छन्द है अतः गुरु को दो लघु में तोड़ा जा सकता है।
दो-दो या चारों चरण समतुकांत होने चाहिये।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
यशस्वी आप भी इस कविता की तरह ही जीवन का लक्ष्य बनाकर बढ़ती रहो।
बहुत सुंदर।
हार्दिक आभार भैया।
वाह शुचिता बहन गोपी छंद में बहुत ही संदेश परक रचना हुई है।