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ग्रंथि छंद “देश का ऊँचा सदा”

“गीतिका विधा”

देश का ऊँचा सदा, परचम रखें,
विश्व भर में देश-छवि, रवि सम रखें।

मातृ-भू सर्वोच्च है, ये भाव रख,
देश-हित में प्राण दें, दमखम रखें।

विश्व-गुरु भारत रहा, बन कर कभी,
देश फिर जग-गुरु बने, उप-क्रम रखें।

देश का गौरव सदा, अक्षुण्ण रख,
भारती के मान को, चम-चम रखें।

आँख हम पर उठ सके, रिपु की नहीं,
आत्मगौरव और बल, विक्रम रखें।

सर उठा कर हम जियें, हो कर निडर,
मूल से रिपु-नाश का, उद्यम रखें।

रोटियाँ सब को मिलें, छत भी मिले,
दीन जन की पीड़ लख, दृग नम रखें।

हम गरीबी को हटा, संपन्न हों,
भाव ये सारे ‘नमन’, उत्तम रखें।
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ग्रंथि छंद विधान –

ग्रंथि छंद चार पदों का एक सम मात्रिक छंद है जिसमें प्रति पद 19 मात्राएँ होती हैं तथा प्रत्येक पद 12 और 7 मात्रा की यति में विभक्त रहता है।

इसकी मात्रा बाँट निम्न है।

2122 212,2 212

चूँकि ग्रंथि छंद एक मात्रिक छंद है अतः गुरु को आवश्यकतानुसार 2 लघु किया जा सकता है।
चारों पद समतुकांत या 2-2 पद समतुकांत।

लिंक:- मात्रिक छंद परिभाषा
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया

4 Responses

  1. देश को समृद्ध एवं सशक्त बनाने हेतु बहुत ही सुंदर देश भक्ति से ओतप्रोत गीतिका है।

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