Categories
Archives

चांद्रायण छंद  ‘सुमिरन’

हरि के नाम अनेक, जपा नित कीजिये।
आठों याम सचेत, सुधा रस पीजिये।।
महिमा बड़ी विराट, नित स्मरण में रखें।
मन से नाम पुकार, कृपा प्रभु की लखें।।

पढ़लें ग्रन्थ अनेक, सुधिजन सभी कहें।
स्थायी ये न शरीर, मकानों से ढहें।
खाली हाथ पसार, जगत सब छोड़ते
माया, मोह, विलास, त्याग पथ मोड़ते।।

सुमिरन सहज उपाय, मनुज करले अभी।
कल पर कभी न टाल, न कल आता कभी।।
कर अविलम्ब पुकार, नाथ हे नाथ हे।
तेरा नाम सुहाय, सदा प्रभु साथ दे।।

सुख-दुख एक समान, हृदय में धारलें।
कर उपकार सदैव, स्वयं को तारलें।।
जग यह कीच समान, कमल बन के खिलो।
सुमिरन का रख ध्येय, नहीं पथ से हिलो।।

मात्रिक छंद परिभाषा

◆◆◆◆◆◆◆

चांद्रायण छंद विधान-

यह प्रति पद 21 मात्राओं का सम मात्रिक छंद है जो 11,10 मात्राओं के दो यति खण्डों में विभाजित रहता है।
दो दो पद या चारों पद समतुकांत होते हैं।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
सतकल + जगण (121) , पँचकल + रगण (S1S)= 11, 10 = 21 मात्राएँ।
7 121, 5 S1S (रगण) = 21 मात्राएँ।

सतकल की संभावित संभावनाएं-

1222, 2122, 2212, 2221 चारों रूप मान्य है।

पंचकल की निम्न संभावनाएँ हैं :-

122
212
221

चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ सकते हैं, पर अंत सदैव रगण (S1S) से होना चाहिए।
●●●●●●●

शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

4 Responses

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *