चांद्रायण छंद ‘सुमिरन’
हरि के नाम अनेक, जपा नित कीजिये।
आठों याम सचेत, सुधा रस पीजिये।।
महिमा बड़ी विराट, नित स्मरण में रखें।
मन से नाम पुकार, कृपा प्रभु की लखें।।
पढ़लें ग्रन्थ अनेक, सुधिजन सभी कहें।
स्थायी ये न शरीर, मकानों से ढहें।
खाली हाथ पसार, जगत सब छोड़ते
माया, मोह, विलास, त्याग पथ मोड़ते।।
सुमिरन सहज उपाय, मनुज करले अभी।
कल पर कभी न टाल, न कल आता कभी।।
कर अविलम्ब पुकार, नाथ हे नाथ हे।
तेरा नाम सुहाय, सदा प्रभु साथ दे।।
सुख-दुख एक समान, हृदय में धारलें।
कर उपकार सदैव, स्वयं को तारलें।।
जग यह कीच समान, कमल बन के खिलो।
सुमिरन का रख ध्येय, नहीं पथ से हिलो।।
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चांद्रायण छंद विधान-
यह प्रति पद 21 मात्राओं का सम मात्रिक छंद है जो 11,10 मात्राओं के दो यति खण्डों में विभाजित रहता है।
दो दो पद या चारों पद समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
सतकल + जगण (121) , पँचकल + रगण (S1S)= 11, 10 = 21 मात्राएँ।
7 121, 5 S1S (रगण) = 21 मात्राएँ।
सतकल की संभावित संभावनाएं-
1222, 2122, 2212, 2221 चारों रूप मान्य है।
पंचकल की निम्न संभावनाएँ हैं :-
122
212
221
चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ सकते हैं, पर अंत सदैव रगण (S1S) से होना चाहिए।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
शुचिता बहन हरि भक्ति और हरि नाम की महिमा पर चांद्रायण छंद में बहुत प्यारी रचना।
हार्दिक आभार भैया।
प्रभु सुमिरन का संदेश देती सुंदर रचना।
आभार आपका ।