चित्रपदा छन्द
“गुरु वंदना”
हे गुरुदेव विधाता,
ज्ञान सुधा रस दाता।
मात,पिता तुम भ्राता,
जीवन ज्योत प्रदाता।
नित्य करे पर सेवा,
युग संचालक देवा।
सत्य सदा वरदाता,
हे गुरुदेव विधाता।
सार्थक पाठ पढ़ाते,
सत्पथ वो दिखलाते।
बुद्धि विवेक अगाथा,
हे गुरुदेव विधाता।
है भगवान पधारे,
रूप स्वयं गुरु धारे।
शीश झुका जग ध्याता,
हे गुरुदेव विधाता।
=============
चित्रपदा छन्द विधान- (वर्णिक छंद परिभाषा)
211 211 2 2 = भगण, भगण, गुरु, गुरु
कुल 8 वर्ण की वर्णिक छंद।
चार चरण, दो-दो समतुकांत या चारो समतुकांत।
***********
शुचिता अग्रवाल “शुचिसंदीप”
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
गुरु पर अच्छी कविता।
आभार
उत्साहवर्धन हेतु अतिशय आभार भैया।
वाह चित्रपदा छंद में गुरुदेव की महिमा का सुंदर वर्णन।