छंद परिभाषा
मात्रा या वर्ण की निश्चित संख्या, ह्रस्व स्वर और दीर्घ स्वर की विभिन्न आवृत्ति, मात्रा बाँट, यति, गति तथा अन्त्यानुप्रास के नियमों में आबद्ध पद्यात्मक इकाई छंद कहलाती है। इन नियमों का बंधन आदेशात्मक या निषेधात्मक हो सकता है। नियमों में स्वल्प अंतर भी छंद भंग की स्थिति उत्पन्न कर देता है जिससे लय में व्यवधान उत्पन्न हो जाता है जो छंद को ही लुप्तप्राय कर देता है।
उपरोक्त नियमों की विभिन्नता से अनेक लय का निर्माण होता है, जिनके आधार पर अनेकानेक छंद का निर्माण होता है। ह्रस्व स्वर के उच्चारण में जितना समय लगता है दीर्घ स्वर के उच्चारण में उसका दुगुना समय लगता है। छंदों में ह्रस्व स्वर की एक मात्रा गिनी जाती है जिसे लघु के नाम से जाना जाता है। इसे 1 की संख्या से भी प्रकट किया जाता है। दीर्घ स्वर की दो मात्रा होती है जिसे गुरु के नाम से जाना जाता है और 2 की संख्या से भी प्रकट किया जाता है। पदांत में केवल एक लघु की वृद्धि कर देने से ही छंद की लय, गति में अंतर आ जाता है और वह छंद का एक अलग भेद हो जाता है।
छंदों में सामान्यतया चार पद (दल) होते हैं। कुछ छंद विशेष में न्यूनाधिक भी होते हैं। जैसै दोहा, बरवै, उल्लाला दो पद वाले द्विपदी छंद होते हैं। वहीं कुण्डलिया, छप्पय छह पद वाले षटपदी छंद होते हैं। श्री जगन्नाथ प्रसाद ‘भानु’ के “छंद प्रभाकर” ग्रंथ में 800 से अधिक विभिन्न छंदों का वर्णन है। इसके अतिरिक्त कविगण पहले से स्थापित छंदों में कुछ हेरफेर के साथ निरंतर नये छंद का निर्माण करते रहते हैं।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
बहुत ही शानदर
रौनक प्रतिक्रिया का धन्यवाद।
छन्द परिभाषा को बहुत ही सुंदर तरीके से समझाया है आपने।
संग्रहनीय ।
शुचि बहन यह वेब साइट हिन्दी भाषा की समस्त प्रकार की छंदों को समर्पित है। यहाँ छंदों के विषय में हर प्रकार की जानकारी उपलब्ध करायी जायेगी।