देव घनाक्षरी
देव घनाक्षरी विधान :-
कुल वर्ण = 33
8, 8, 8, 9 पर यति अनिवार्य।
पदान्त हमेशा 3 लघु (1 1 1) आवश्यक। यह पदान्त भी पुनरावृत रूप में जैसे ‘चलत चलत’ रहे तो उत्तम।
देव घनाक्षरी विधान :-
कुल वर्ण = 33
8, 8, 8, 9 पर यति अनिवार्य।
पदान्त हमेशा 3 लघु (1 1 1) आवश्यक। यह पदान्त भी पुनरावृत रूप में जैसे ‘चलत चलत’ रहे तो उत्तम।
मनहरण घनाक्षरी
होली के रंग (1)
होली की मची है धूम, रहे होलियार झूम,
मस्त है मलंग जैसे, डफली बजात है।
डमरू घनाक्षरी 32 वर्ण प्रति पद की घनाक्षरी है। इस घनाक्षरी की खास बात जो है वह यह है कि ये 32 के 32 वर्ण लघु तथा मात्रा रहित होने चाहिए।
मनहरण घनाक्षरी छंद
जनसंख्या भीड़ दिन्ही, भीड़ धक्का-मुक्की किन्ही,
धक्का-मुक्की से ही बनी, व्यवस्था कतार की।
जलहरण घनाक्षरी – चार पदों के इस छंद में प्रत्येक पद में कुल वर्ण संख्या 32 रहती है। 32 वर्ण लंबे पद में 16, 16 पर यति रखना अनिवार्य है। जलहरण घनाक्षरी का पदांत सदैव लघु लघु वर्ण (11) से होना आवश्यक है।
सूर घनाक्षरी विधान –
चार पदों के इस छंद में प्रत्येक पद में कुल वर्ण संख्या 30 होती है। पद में 8, 8, 8, 6 वर्ण पर यति रखना अनिवार्य है। चरणान्त कुछ भी रख सकते हैं।
कृपाण घनाक्षरी विधान –
चार पदों के इस छंद में प्रत्येक पद में कुल वर्ण संख्या 32 होती है। पद में 8, 8, 8, 8 वर्ण पर यति रखना अनिवार्य है। पद के चारों चरणों का अंत गुरु वर्ण (S) तथा लघु वर्ण (1) से होना आवश्यक है। हर यति समतुकांत होनी भी आवश्यक है।
जनहरण घनाक्षरी विधान :-
चार पदों के इस छन्द में प्रत्येक पद में कुल वर्ण संख्या 31 होती है। इसमें पद के प्रथम 30 वर्ण लघु रहते हैं तथा केवल पदान्त दीर्घ रहता है।
मनहरण घनाक्षरी, ‘कविकुल’ कविकुल निखरा है, काव्य-रस बिखरा है, रसपान करने को, कविगण आइये। प्रेम का ये अनुबंध, अतिप्रिय है सम्बंध, भावों से पिरोये छन्द, मंत्रमुग्ध गाईये। काव्य कुंज ये है प्यारा, भरे मन उजियारा,
मनहरण घनाक्षरी
“भारत महिमा”
उत्तर बिराज कर, गिरिराज रखे लाज,
तुंग श्रृंग रजत सा, मुकुट सजात है।
मनहरण घनाक्षरी विधान :-
मनहरण को घनाक्षरी छंदों का सिरमौर कहें तो अनुचित नहीं होगा। चार पदों के इस छन्द में प्रत्येक पद में कुल वर्ण संख्या 31 होती है। घनाक्षरी एक वर्णिक छंद है अतः वर्णों की संख्या 31 वर्ण से न्यूनाधिक नहीं हो सकती। चारों पदों में समतुकांतता होनी आवश्यक है। 31 वर्ण लंबे पद में 16, 15 पर यति रखना अनिवार्य है। पदान्त हमेशा दीर्घ वर्ण ही रहता है।
घनाक्षरी विवेचन
घनाक्षरी वर्णिक छंद है जिसमें 30 से लेकर 33 तक वर्ण होते हैं परंतु अन्य वर्णिक छन्दों की तरह इसमें गणों का नियत क्रम नहीं है। यह कवित्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। घनाक्षरी गणों के और मात्राओं के बंधन में बंधा हुआ छंद नहीं है परंतु इसके उपरांत भी बहुत ही लय युक्त मधुर छंद है और यह लय कुछेक नियमों के अनुपालन से ही सधती है।
नाम– बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान– मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।