लावणी छंद, पर्यायवाची कविता
लावणी छंद, पर्यायवाची कविता पर्यायवाची शब्द याद करने का छंदबद्ध कविता के माध्यम से आसान उपाय- एक अर्थ के विविध शब्द ही, कहलाते पर्याय सभी। भाषा वाणी बोली की वे, कर देते हैं वृद्धि तभी।। याद
लावणी छंद, पर्यायवाची कविता पर्यायवाची शब्द याद करने का छंदबद्ध कविता के माध्यम से आसान उपाय- एक अर्थ के विविध शब्द ही, कहलाते पर्याय सभी। भाषा वाणी बोली की वे, कर देते हैं वृद्धि तभी।। याद
लावणी छंद ‘एक चिट्ठी माँ के नाम’ लिखने बैठी माँ को चिट्ठी, हाल सभी बतलाती है। नन्हे मन की अति व्याकुलता, खोल हृदय दिखलाती है।। लिखती वो सब ठीक चल रहा, बदला कुछ यूँ खास
लावणी छंद (गीत) ‘दिल मेरा ही छला गया’ क्यूँ शब्दों के जादूगर से, दिल मेरा ही छला गया। उमड़ घुमड़ बरसाया पानी, बादल था वो चला गया।। तड़प रही थी एक बूंद को, सागर चलकर
लावणी छंद गीत
“बेटियाँ”
घर की रौनक होती बेटी, सर्व गुणों की खान यही।
बेटी होती जान पिता की, है माँ का अभिमान यही।।
लावणी छंद सम-पद मात्रिक छंद है। इस छंद में चार पद होते हैं, जिनमें प्रति पद 30 मात्राएँ होती हैं।
प्रत्येक पद दो चरण में बंटा हुआ रहता है जिनकी यति 16-14 पर निर्धारित होती है।
लावणी छंद “राधा-कृष्ण”
लता, फूल, रज के हर कण में, नभ से झाँक रहे घन में।
राधे-कृष्णा की छवि दिखती, वृन्दावन के निधिवन में।।
राधा-माधव युगल सलोने, निशदिन वहाँ विचरते हैं।
प्रेम सुधा बरसाने भू पर, लीलाएँ नित करते हैं।।
जयदयालजी गोयन्दका
देवपुरुष जीवन गाथा से,प्रेरित जग को करना है,
संतों की अमृत वाणी को,अंतर्मन में भरना है।
है सौभाग्य मेरा कुछ लिखकर,कार्य करूँ जन हितकारी,
शत-शत नमन आपको मेरा,राह दिखायी सुखकारी।१।
लावणी छंद विधान
लावणी छंद सम मात्रिक छंद है। इस छंद में चार पद होते हैं, जिनमें प्रति पद 30 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक पद दो चरण में बंटा हुआ रहता है जिनकी यति 16-14 पर निर्धारित होती है।
नाम– बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान– मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।