सोरठा छंद ‘सोरठा विधान’
सोरठा छंद ‘सोरठा विधान’ लिखें सोरठा आप, दोहे को उल्टा रचें। अनुपम छोड़े छाप, लिखे सोरठा जो मनुज।। अठकल पाछे ताल, विषम चरण में राखिये। विषम अंत की चाल, तुकबंदी से ही खिले।। अठकल सरल
सोरठा छंद ‘सोरठा विधान’ लिखें सोरठा आप, दोहे को उल्टा रचें। अनुपम छोड़े छाप, लिखे सोरठा जो मनुज।। अठकल पाछे ताल, विषम चरण में राखिये। विषम अंत की चाल, तुकबंदी से ही खिले।। अठकल सरल
सोरठा छंद और दोहा छंद के विधान में कोई अंतर नहीं है केवल चरण पलट जाते हैं। दोहा के सम चरण सोरठा में विषम बन जाते हैं और दोहा के विषम चरण सोरठा के सम। तुकांतता भी वही रहती है। यानी सोरठा में विषम चरण में तुकांतता निभाई जाती है जबकि पंक्ति के अंत के सम चरण अतुकांत रहते हैं।
नाम– बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान– मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।