लावणी छंद ” बेटियाँ”
लावणी छंद गीत
“बेटियाँ”
घर की रौनक होती बेटी, सर्व गुणों की खान यही।
बेटी होती जान पिता की, है माँ का अभिमान यही।।
लावणी छंद गीत
“बेटियाँ”
घर की रौनक होती बेटी, सर्व गुणों की खान यही।
बेटी होती जान पिता की, है माँ का अभिमान यही।।
ग्रंथि छंद चार पदों का एक सम मात्रिक छंद है जिसमें प्रति पद 19 मात्राएँ होती हैं तथा प्रत्येक पद 12 और 7 मात्रा की यति में विभक्त रहता है।
2122 212,2 212
“हास्य कुण्डलिया”
बहना तुमसे ही कहूँ, अपने हिय की बात,
जीजा तेरा कवि बना, बोले सारी रात।
बोले सारी रात, नींद में कविता गाये,
भृकुटी अपनी तान, वीर रस गान सुनाये।
प्रकट करे आभार, गजब ढाता यह कहना,
धरकर मेरा हाथ, कहे आभारी बहना।
चौपई छंद जो जयकरी छंद के नाम से भी जाना जाता है,15 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। इन 15 मात्राओं की मात्रा बाँट:- 12 + S1 है। 12 मात्रिक अठकल चौकल, चौकल अठकल या तीन चौकल हो सकता है।
कुण्डलिया छंद, ‘गंगा मैया’
गंगा मैया आपकी,शरण पड़े नर नार।
पावन मन निर्मल करो, काटो द्वेष विकार।।
कुंडल छंद 22 मात्रा का सम मात्रिक छंद है जिसमें 12,10 मात्रा पर यति रहती है। अंत में दो गुरु आवश्यक; यति से पहले त्रिकल आवश्यक। मात्रा बाँट :- 6+3+3, 6+SS
कुण्डलिया छंद
मोबायल से मिट गये, बड़ों बड़ों के खेल।
नौकर, सेठ, मुनीमजी, इसके आगे फेल।
इसके आगे फेल, काम झट से निपटाता।
मुख को लखते लोग, मार बाजी ये जाता।
निकट समस्या देख, करो नम्बर को डॉयल।
सौ झंझट इक साथ, दूर करता मोबायल।।
चंडिका छंद जो कि धरणी छंद के नाम से भी जाना जाता है, 13 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत रगण (S1S) से होना आवश्यक है। इसमें प्रथम 8 मात्रा पर यति अनिवार्य है।
हरिगीतिका छंद चार पदों का एक सम-पद मात्रिक छंद है। प्रति पद 28 मात्राएँ होती हैं तथा यति 16 और 12 मात्राओं पर होती है। मात्रा बाँट-
2212 2212 2212 221S
चंद्रमणि छंद 13 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। इन 13 मात्राओं की मात्रा बाँट ठीक दोहा छंद के विषम चरण वाली है जो 8 2 1 2 = 13 मात्रा है।
निश्चल छंद 23 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।
यह 16 और 7 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहती है। दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2222 2222, 22S1
चारणी साहित्य मे दोहा छंद के कई विशिष्ट अलंकार हैं, उन्ही में सें एक वयन सगाई अलंकार (वैण सगाई अलंकार) है। दोहा छंद के हर चरण का प्रारंभिक व अंतिम शब्द एक ही वर्ण से प्रारंभ हो तो यह अलंकार सिद्ध होता है।
लावणी छंद सम-पद मात्रिक छंद है। इस छंद में चार पद होते हैं, जिनमें प्रति पद 30 मात्राएँ होती हैं।
प्रत्येक पद दो चरण में बंटा हुआ रहता है जिनकी यति 16-14 पर निर्धारित होती है।
उल्लाला छंद 26 मात्रिक छंद है जिसके चरण 13-13 मात्राओं के यति खण्डों में विभाजित रहते हैं। चरण की मात्रा बाँट: अठकल + द्विकल + लघु + द्विकल है।
गोपाल छंद जो भुजंगिनी छंद के नाम से भी जाना जाता है, 15 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। 15 मात्राओं की मात्रा बाँट:- अठकल + त्रिकल + 1S1 (जगण) है।
शोभन छंद जो कि सिंहिका छंद के नाम से भी जाना जाता है, 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।
यह 14 और 10 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है। इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
5 2 5 2, 212 1121
सुमित्र छंद 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।
यह 10 और 14 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है। इसका चरणादि एवं चरणान्त जगण (121) से होना अनिवार्य है। इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
121 222, 2222 (अठकल) 2121
सारस छंद 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।
यह 12 और 12 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है। चरणादि गुरु वर्ण तथा विषमकल होना अनिवार्य है। चरणान्त सगण (112) से होता है।
गंग छंद 9 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत गुरु गुरु (SS) से होना आवश्यक है।
उज्ज्वला छंद 15 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है। यह तैथिक जाति का छंद है। इन 15 मात्राओं की मात्रा बाँट:- द्विकल + अठकल + S1S (रगण) है।
नाम– बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान– मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।