हरिगीतिका छंद “माँ और उसका लाल”
हरिगीतिका छंद चार पदों का एक सम-पद मात्रिक छंद है। प्रति पद 28 मात्राएँ होती हैं तथा यति 16 और 12 मात्राओं पर होती है। मात्रा बाँट-
2212 2212 2212 221S
हरिगीतिका छंद चार पदों का एक सम-पद मात्रिक छंद है। प्रति पद 28 मात्राएँ होती हैं तथा यति 16 और 12 मात्राओं पर होती है। मात्रा बाँट-
2212 2212 2212 221S
चंद्रमणि छंद 13 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। इन 13 मात्राओं की मात्रा बाँट ठीक दोहा छंद के विषम चरण वाली है जो 8 2 1 2 = 13 मात्रा है।
निश्चल छंद 23 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।
यह 16 और 7 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहती है। दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2222 2222, 22S1
चारणी साहित्य मे दोहा छंद के कई विशिष्ट अलंकार हैं, उन्ही में सें एक वयन सगाई अलंकार (वैण सगाई अलंकार) है। दोहा छंद के हर चरण का प्रारंभिक व अंतिम शब्द एक ही वर्ण से प्रारंभ हो तो यह अलंकार सिद्ध होता है।
लावणी छंद सम-पद मात्रिक छंद है। इस छंद में चार पद होते हैं, जिनमें प्रति पद 30 मात्राएँ होती हैं।
प्रत्येक पद दो चरण में बंटा हुआ रहता है जिनकी यति 16-14 पर निर्धारित होती है।
उल्लाला छंद 26 मात्रिक छंद है जिसके चरण 13-13 मात्राओं के यति खण्डों में विभाजित रहते हैं। चरण की मात्रा बाँट: अठकल + द्विकल + लघु + द्विकल है।
गोपाल छंद जो भुजंगिनी छंद के नाम से भी जाना जाता है, 15 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। 15 मात्राओं की मात्रा बाँट:- अठकल + त्रिकल + 1S1 (जगण) है।
शोभन छंद जो कि सिंहिका छंद के नाम से भी जाना जाता है, 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।
यह 14 और 10 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है। इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
5 2 5 2, 212 1121
सुमित्र छंद 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।
यह 10 और 14 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है। इसका चरणादि एवं चरणान्त जगण (121) से होना अनिवार्य है। इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
121 222, 2222 (अठकल) 2121
सारस छंद 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।
यह 12 और 12 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है। चरणादि गुरु वर्ण तथा विषमकल होना अनिवार्य है। चरणान्त सगण (112) से होता है।
गंग छंद 9 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत गुरु गुरु (SS) से होना आवश्यक है।
उज्ज्वला छंद 15 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है। यह तैथिक जाति का छंद है। इन 15 मात्राओं की मात्रा बाँट:- द्विकल + अठकल + S1S (रगण) है।
अरिल्ल छंद 16 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। प्रति चरण चार चौकल के अतिरिक्त अरिल्ल छंद में चरणांत की बाध्यता है। यह चरणांत दो लघु (11) या यगण (1SS) का हो सकता है।
डिल्ला छंद विधान – डिल्ला छंद संस्कारी जाति का 16 मात्रिक छंद है। इसमें चार चौकल के अतिरिक्त चरणांत भगण (S11) से होना चाहिए।
सारस छंद 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।
यह 12 और 12 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है। चरणादि गुरु वर्ण तथा विषमकल होना अनिवार्य है। चरणान्त सगण (112) से होता है।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2112 2112, 2112 2112
दिगपाल छंद जो कि मृदुगति छंद के नाम से भी जाना जाता है, 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।
यह 12 और 12 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है। इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2212 122, 2212 122
सोरठा छंद और दोहा छंद के विधान में कोई अंतर नहीं है केवल चरण पलट जाते हैं। दोहा के सम चरण सोरठा में विषम बन जाते हैं और दोहा के विषम चरण सोरठा के सम। तुकांतता भी वही रहती है। यानी सोरठा में विषम चरण में तुकांतता निभाई जाती है जबकि पंक्ति के अंत के सम चरण अतुकांत रहते हैं।
पादाकुलक छंद 16 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। इन 16 मात्राओं की मात्रा बाँट:- चार चौकल हैं।
पादाकुलक छंद के विभिन्न भेदों में मत्त समक छंद, विश्लोक छंद, चित्रा छंद, वानवासिका छंद इत्यादि सम्मिलित हैं।
मदनाग छंद 25 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जो 17-8 मात्राओं के दो यति खण्ड में विभक्त रहता है।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
1222 1222 12, 222S
सुगति छंद जो कि शुभगति छंद के नाम से भी जाना जाता है, 7 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत गुरु वर्ण (S) से होना आवश्यक है।
सुगीतिका छंद विधान-
सुगीतिका छंद 25 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जो 15-10 मात्राओं के दो यति खण्ड में विभक्त रहता है।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
1 2122*2, 2122 21
नाम– बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान– मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।