मकरन्द छंद ‘कन्हैया वंदना’
मकरन्द छंद विधान –
“नयनयनाना, ननगग” पाना,
यति षट षट अठ, अरु षट वर्णा।
मधु ‘मकरन्दा’, ललित सुछंदा,
रचत सकल कवि, यह मृदु कर्णा।।
मकरन्द छंद विधान –
“नयनयनाना, ननगग” पाना,
यति षट षट अठ, अरु षट वर्णा।
मधु ‘मकरन्दा’, ललित सुछंदा,
रचत सकल कवि, यह मृदु कर्णा।।
सारवती छंद विधान –
“भाभभगा” जब वर्ण सजे।
‘सारवती’ तब छंद लजे।।
“भाभभगा” = भगण भगण भगण + गुरु
तोटक छंद ‘उठ भोर हुई’
उठ भोर हुई बगिया महके।
चिड़िया मदमस्त हुई चहके।।
झट आलस त्याग करो अपना।
तब ही सच हो सबका सपना।।
नील छंद / अश्वगति छंद विधान –
“भा” गण पांच रखें इक साथ व “गा” तब दें।
‘नील’ सुछंदजु षोडस आखर की रच लें।।
“भा” गण पांच रखें इक साथ व “गा”= 5 भगण+गुरु
धार छंद विधान
“माला” वार।
पाओ ‘धार’।।
“माला” = मगण लघु
222 1 = 4 वर्ण प्रति चरण का वर्णिक छंद।
दोधक छंद / बंधु छंद विधान –
“भाभभगाग” इकादश वर्णा।
देवत ‘दोधक’ छंद सुपर्णा।।
“भाभभगाग” = भगण भगण भगण गुरु गुरु
211 211 211 22 = 11 वर्ण की वर्णिक छंद।
तोटक छंद विधान –
जब द्वादश वर्ण “ससासस” हो।
तब ‘तोटक’ पावन छंदस हो।।
“ससासस” = चार सगण
112 112 112 112 = 12 वर्ण
वाणी बोलो,सुनकर जिसे,काल भी जाग जाए।
आगे आओ,सुरभि जग के,नाम बाँटो सुहाए।।
आभा फैले,धरणि तल में,गान पंछी सुनाएँ।
प्रातः जागे,सब जन जगें,सौख्य का सार पाएँ।।
मंदाक्रान्ता छंद
मंदाक्रान्ता छंद
गाना होता,मगन मन से,राम का नाम प्यारे।
आओ गाएँ,हम-तुम सभी,त्याग दें काम सारे।।
मिथ्या जानो,जगत भर के,रूप-लावण्य पाए।
वेदों के ये,वचन पढ़ के,काव्य के छंद गाए।।
रक्ता छंद विधान –
[रगण जगण गुरु]
( 212 121 2 ) = 7 वर्ण की वर्णिक छंद
सुमति छंद विधान –
गण “नरानया” जब सज जाते।
‘सुमति’ छंद की लय बिखराते।।
“नरानया” = नगण रगण नगण यगण =111 212 111 122
चन्द्रिका छंद विधान –
“ननततु अरु गा”, ‘चन्द्रिका’ राचते।
यति सत अरु छै, छंद को साजते।।
111 111 2,21 221 2 = 13 वर्ण, 7, 6 यति।
चंचला छंद विधान –
“राजराजराल” वर्ण षोडसी रखो सजाय।
‘चंचला’ सुछंद राच आप लें हमें लुभाय।।
21×8 = 16 वर्ण प्रत्येक चरण।
घनश्याम छंद विधान –
“जजाभभभाग”, में यति छै, दश वर्ण रखो।
रचो ‘घनश्याम’, छंद अतीव ललाम चखो।।
“जजाभभभाग” = जगण जगण भगण भगण भगण गुरु।
रथोद्धता छंद विधान –
“रानरा लघु गुरौ” ‘रथोद्धता’।
तीन वा चतुस तोड़ के सजा।
“रानरा लघु गुरौ” = 212 111 212 12
गजपति छंद विधान –
“नभलगा” गण रखो।
‘गजपतिम्’ रस चखो।।
“नभलगा” नगण भगण लघु गुरु
( 111 211 1 2)
शालिनी छंद विधान –
राचें बैठा, सूत्र “मातातगागा”।
गावें प्यारी, ‘शालिनी’ छंद रागा।।
“मातातगागा”= मगण, तगण, तगण, गुरु, गुरु
(222 221 221 22)
कुसुमसमुदिता छंद विधान –
“भाननगु” गणन रचिता।
छंदस ‘कुसुमसमुदिता’।।
“भाननगु” = भगण नगण नगण गुरु
(211 111 111 2)
हरिणी छंद विधान –
मधुर ‘हरिणी’, राचें बैठा, “नसामरसालगे”।
प्रथम यति है, छै वर्णों पे, चतुष् फिर सप्त पे।
“नसामरसालगे” = नगण, सगण, मगण, रगण, सगण, लघु और गुरु।
111 112, 222 2,12 112 12
नाम– बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान– मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।