हरिणी छंद “राधेकृष्णा नाम”
हरिणी छंद विधान –
मधुर ‘हरिणी’, राचें बैठा, “नसामरसालगे”।
प्रथम यति है, छै वर्णों पे, चतुष् फिर सप्त पे।
“नसामरसालगे” = नगण, सगण, मगण, रगण, सगण, लघु और गुरु।
111 112, 222 2,12 112 12
हरिणी छंद विधान –
मधुर ‘हरिणी’, राचें बैठा, “नसामरसालगे”।
प्रथम यति है, छै वर्णों पे, चतुष् फिर सप्त पे।
“नसामरसालगे” = नगण, सगण, मगण, रगण, सगण, लघु और गुरु।
111 112, 222 2,12 112 12
कामदा छंद / पंक्तिका छंद विधान –
“रायजाग” ये वर्ण राखते।
छंद ‘कामदा’ धीर चाखते।।
“रायजाग” = रगण यगण जगण गुरु (212 122 121 2)
कलाधर छंद विधान –
पाँच बार “राज” पे “गुरो” ‘कलाधरं’ सुछंद।
षोडशं व पक्ष पे विराम आप राखिए।।
ये घनाक्षरी समान छंद है प्रवाहमान।
राचिये इसे सभी पियूष-धार चाखिये।।
पाँच बार “राज” पे “गुरो” = (रगण+जगण)*5 + गुरु। (212 121)*5+2
यानी गुरु लघु की 15 आवृत्ति के बाद गुरु यानी
21×15 + 2 तथा 16 और पक्ष=15 पर यति।
कनक मंजरी छंद विधान:-
प्रथम रखें लघु चार तबै षट “भा” गण संग व ‘गा’ रख लें।
सु’कनक मंजरि’ छंद रचें यति तेरह वर्ण तथा दश पे।।
लघु चार तबै षट “भा” गण संग व ‘गा’ = 4लघु+6भगण(211)+1गुरु]=23 वर्ण
कण्ठी छंद विधा –
“जगाग” वर्णी।
सु-छंद ‘कण्ठी’।।
“जगाग” = जगण गुरु गुरु
121 2 2
5 वर्ण प्रति चरण का वर्णिक छंद। 4 चरण,
2-2 चरण समतुकांत
इंदिरा छंद / राजहंसी छंद विधान:-
“नररलाग” से छंद लो तिरा।
मधुर ‘राजहंसी’ व ‘इंदिरा’।।
“नररलाग” = नगण रगण रगण + लघु गुरु
भुजंगप्रयात छंद विधान –
4 यगण (122) यानी कुल 12 वर्ण प्रत्येक चरण की वर्णिक छंद। चार चरण दो दो समतुकांत।
वसन्ततिलका छंद विधान –
“ताभाजजागगु” गणों पर वर्ण राखो।
प्यारी ‘वसन्ततिलका’ तब छंद चाखो।।
“ताभाजजागगु” = तगण, भगण, जगण, जगण और दो गुरु।
भक्ति छंद विधान –
“तायाग” सजी क्या है।
ये ‘भक्ति’ सुछंदा है।।
“तायाग” = तगण यगण, गुरु
मालिनी छंद विधान –
“ननिमयय” गणों में, ‘मालिनी’ छंद जोड़ें।
यति अठ अरु सप्ता, वर्ण पे आप तोड़ें।।
“ननिमयय” = नगण, नगण, मगण, यगण, यगण।
111 111 22,2 122 122
शार्दूलविक्रीडित छंद विधान –
“मैं साजूँ सतताग” वर्ण दश नौ, बारा व सप्ता यतिम्।
राचूँ छंद रसाल चार पद की, ‘शार्दूलविक्रीडितम्’।।
“मैं साजूँ सतताग” = मगण, सगण, जगण, सगण, तगण, तगण और गुरु।
222 112 121 112// 221 221 2
यशोदा छंद विधान –
रखो “जगोगा” ।
रचो ‘यशोदा’।।
“जगोगा” = जगण, गुरु गुरु
121 2 2= 5 वर्ण की वर्णिक छंद।
शैलसुता छंद विधान –
शैलसुता छंद चार चरण का वर्णिक छंद होता है जिसमें दो- दो चरण समतुकांत होते हैं।
4 लघु + 6भगण (211)
+1 गुरु = 23 वर्ण
1111 + 211*6 + 2
सिंहनाद छंद विधान –
“सजसाग” वर्ण दश राखो।
तब ‘सिंहनाद’ मधु चाखो।।
“सजसाग” = सगण जगण सगण गुरु।
गिरिधारी छंद विधान –
“सनयास” अगर तू सूत्र रखे।
तब छंदस ‘गिरिधारी’ हरखे।।
“सनयास” = सगण, नगण, यगण, सगण
गाथ छंद विधान –
सूत्र राच “रसोगागा”।
‘गाथ’ छंद मिले भागा।।
“रसोगागा” = रगण, सगण, गुरु गुरु
स्त्रग्धरा छंद विधान –
“माराभाना ययाया”, त्रय-सत यति दें, वर्ण इक्कीस या में।
बैठा ये सूत्र न्यारा, मधुर रसवती, ‘स्त्रग्धरा’ छंद राचें।।
“माराभाना ययाया”= मगण, रगण, भगण, नगण, तथा लगातार तीन यगण। (कुल 21 अक्षरी)
वंशस्थ छंद विधान –
“जताजरौ” द्वादश वर्ण साजिये।
प्रसिद्ध ‘वंशस्थ’ सुछंद राचिये।।
“जताजरौ” = जगण, तगण, जगण, रगण
शिखरिणी छंद विधान –
रखें छै वर्णों पे, यति “यमनसाभालग” रचें।
चतुष् पादा छंदा, सब ‘शिखरिणी’ का रस चखें।।
“यमनसाभालग” = यगण, मगण, नगण, सगण, भगण लघु गुरु ( कुल 17 वर्ण)
मंदाक्रान्ता छंद विधान –
“माभानाता,तगग” रच के, चार छै सात तोड़ें।
‘मंदाक्रान्ता’, चतुष पद की, छंद यूँ आप जोड़ें।।
“माभानाता, तगग” = मगण, भगण, नगण, तगण, तगण, गुरु गुरु (कुल 17 वर्ण)
नाम– बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान– मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।