छवि छंद / मधुभार छंद
प्रिय का न संग।
बेढंग अंग।।
शशि युक्त रात।
जले पर गात।।
रहता उदास।
मिटी सब आस।।
हूँ अति अधीर।
लिये दृग नीर।।
है व्यथित देह।
दे डंक गेह।।
झेल अलगाव।
लगे भव दाव।।
मिला मनमीत।
बजे मधु गीत।।
उद्दीप्त भाव।
हृदय अति चाव।।
है मिलन चाह।
गयी मिट आह।।
प्राप्त नव राह।
शांत सब दाह।।
छायी उमंग।
मन में तरंग।।
फैला उजास।
है मीत पास।।
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छवि छंद / मधुभार छंद विधान –
छवि छंद जो कि मधुभार छंद के नाम से भी जाना जाता है, 8 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत जगण (121) से होना आवश्यक है। यह वासव जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। इन 8 मात्राओं का विन्यास चौकल + जगण (121) है। इसे त्रिकल + 1121 या पंचकल + ताल (21) के रूप में भी रच सकते हैं।
इकी निम्न संभावनाएँ हो सकती हैं।
22 121
21 या 12 + 1121
1211 21
2111 21
221 21
(2 को 11 में तोड़ सकते हैं, पर अंत सदैव जगण (1S1) से होना चाहिए।)
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
छवि छंद में बहुत प्यारी कविता।
आपकी टिप्पणी का बहुत बहुत धन्यवाद।
वियोग एवं मिलन की अलग अलग मनोदशाओं को मधुभार छंद में बहुत ही सुंदर शब्दों से दर्शाया है आपने।
शुचिता बहन तुम्हारी भावभीनी प्रतिक्रिया का हार्दिक धन्यवाद।