जग छंद,
‘क्षणभंगुर जीवन’
सोने हीरे से, केवल तन की, है शान।
महँगे कपड़ों का, मत कर इतना, अभिमान।।
मन चाँदी करले, भजले हरि का, नित नाम।
मानव जीवन का, होता इतना, बस काम।।
खाली आये थे, खाली जाना, उस पार।
भ्रम जग का झूठा, करले मन से, स्वीकार।।
नाट्य मंच जग यह, अभिनय करते, नर-नार।
इस झूठे जग से, क्यूँ करता मन, अभिसार।।
काल कुठार लिये, फिरता रहता, दिन-रात।
धू- धू जल जाये, क्या जाने कब, यह गात।।
हरि बोलो रसना, छोड़ो तीखा, मृदु स्वाद।
त्यागो निंदा रस, विषमय होता, अतिवाद।।
राम नाम धन का, संचय करना, है मूल।
धन, वैभव, यश में, जीवन खोना, है भूल।।
सदाचार अपना, मृदुभाषी रख, व्यवहार।
भवसागर से ‘शुचि’, जीवन नैया, हो पार।।
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जग छंद विधान- मात्रिक छंद परिभाषा
जग छंद 23 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।
यह 10, 8 और 5 मात्रा के तीन यति खंडों में विभक्त रहती है। दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
22222, 2222, 221
10 + 8 + 5= 23
चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है, किंतु अंत 21 अनिवार्य है। अठकल के नियम अनुपालनिय है।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
बहुत सुंदर छंदबद्ध रचना है।
बहुत बहुत आभार आपका।
वाह शुचिता बहन जग छंद में जीवन की नश्वरता का चेतावनी भरे अंदाज में सुंदर दिग्दर्शन।
उत्साहवर्धन हेतु आभार भैया।