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तरलनयन छंद

कबहुँ पड़त, कबहुँ उठत।
नटवर जब, सँभल चलत।।
ठुमकि ठुमकि, धरत चरण।
सरस सकल, यह विवरण।।

यशुमति लख, अति पुलकित।
तन मन दृग, हृदय चकित।।
रह रह कर, वह विहँसत।
सुर नर मुनि, छवि वरनत।।
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तरलनयन छंद विधान –

चतुष नगण, षट षट यति।
‘तरलनयन’, धरतत गति।।

तरलनयन छंद चार नगण से युक्त 12 वर्ण का वर्णिक छंद है। इसमें सब लघु वर्ण रहने चाहिए। यति छह छह वर्ण पर है। चार पद की छंद। दो दो या चारों पद समतुकांत होने चाहिए।

लिंक —>  वर्णिक छंद परिभाषा

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

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