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ताटंक छंद गीत

“माता-पिता”

प्रतिमाओं की पूजा करने, हम मंदिर में जाते हैं।
जिस घर मात-पिता खुश रहते, उस घर ईश्वर आते हैं।

इनके आशीर्वचनों से सब, बाधाएँ टल जाती हैं।
कदमों में खुशियाँ दुनिया की, सारी चलकर आती हैं।।
पालन करने स्वयं विधाता, ज्यूँ घर में बस जाते हैं।
जिस घर मात-पिता खुश रहते, उस घर ईश्वर आते हैं।।

अनुभव की पगडंडी देकर, राह सुलभ बनवाते वो।
अंतहीन निस्वार्थ प्रेम से, खुशियाँ देते जाते वो।।
जग के सारे धर्म ग्रन्थ भी, मष्तक यहीं झुकाते हैं।।
जिस घर मात-पिता खुश रहते, उस घर ईश्वर आते हैं।।

निज संतानों की खुशियों के, सपन सुनहरे वो देखे।
लाभ देखते बच्चों के ही, उनके जीवन के लेखे।।
मात-पिता का ऋण आजीवन, नहीं चुकाये जाते है।
जिस घर मात-पिता खुश रहते, उस घर ईश्वर आते
हैं।

जब तक ठंडी छाँव पिता की, माँ ममता बरसाती है।
जीवन की बगिया भी तब तक, यौवन सी लहराती है।।
बड़भागी होते जो इनका, साथ अधिकतम पाते हैं।
जिस घर मात-पिता खुश रहते, उस घर ईश्वर आते
हैं।

शुचिता अग्रवाल “शुचिसंदीप”
तिनसुकिया, असम

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