ताटंक छंद गीत
“माता-पिता”
प्रतिमाओं की पूजा करने, हम मंदिर में जाते हैं।
जिस घर मात-पिता खुश रहते, उस घर ईश्वर आते हैं।
इनके आशीर्वचनों से सब, बाधाएँ टल जाती हैं।
कदमों में खुशियाँ दुनिया की, सारी चलकर आती हैं।।
पालन करने स्वयं विधाता, ज्यूँ घर में बस जाते हैं।
जिस घर मात-पिता खुश रहते, उस घर ईश्वर आते हैं।।
अनुभव की पगडंडी देकर, राह सुलभ बनवाते वो।
अंतहीन निस्वार्थ प्रेम से, खुशियाँ देते जाते वो।।
जग के सारे धर्म ग्रन्थ भी, मष्तक यहीं झुकाते हैं।।
जिस घर मात-पिता खुश रहते, उस घर ईश्वर आते हैं।।
निज संतानों की खुशियों के, सपन सुनहरे वो देखे।
लाभ देखते बच्चों के ही, उनके जीवन के लेखे।।
मात-पिता का ऋण आजीवन, नहीं चुकाये जाते है।
जिस घर मात-पिता खुश रहते, उस घर ईश्वर आते
हैं।
जब तक ठंडी छाँव पिता की, माँ ममता बरसाती है।
जीवन की बगिया भी तब तक, यौवन सी लहराती है।।
बड़भागी होते जो इनका, साथ अधिकतम पाते हैं।
जिस घर मात-पिता खुश रहते, उस घर ईश्वर आते
हैं।
शुचिता अग्रवाल “शुचिसंदीप”
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
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शुचिता बहन इस मधुर गीत में माता पिता की महिमा तुमने बहुत सुंदर ढंग से गायी है।
आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का हृदय की गहराइयों से आभार प्रकट करती हूँ।
ताटंक छंद में बहुत प्यारा गीत रचा है।
हार्दिक आभार।