तिलका छंद
“युद्ध”
गज अश्व सजे।
रण-भेरि बजे।।
रथ गर्ज हिले।
सब वीर खिले।।
ध्वज को फहरा।
रथ रौंद धरा।।
बढ़ते जब ही।
सिमटे सब ही।।
बरछे गरजे।
सब ही लरजे।।
जब बाण चले।
धरणी दहले।।
नभ नाद छुवा।
रण घोर हुवा।
रज खूब उड़े।
घन ज्यों उमड़े।।
तलवार चली।
धरती बदली।।
लहु धार बही।
भइ लाल मही।।
कट मुंड गए।
सब त्रस्त भए।।
धड़ नाच रहे।
अब हाथ गहे।।
शिव तांडव सा।
खलु दानव सा।।
यह युद्ध चला।
सब ही बदला।।
जब शाम ढ़ली।
चँडिका हँस ली।।
यह युद्ध रुका।
सब जाय चुका।।
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तिलका छंद विधान – लिंक –> वर्णिक छंद परिभाषा
“सस” वर्ण धरे।
‘तिलका’ उभरे।।
“सस” = सगण सगण
(112 112),
दो-दो चरण तुकांत (6वर्ण प्रति चरण )
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
अति सुंदर
हृदयतल से धन्यवाद।
आपकी तिलका छंद की इस रचना में युद्ध की वीभिषका का सुंदर चित्रण हुआ है।
आपकी मथुर प्रतिक्रिया का आत्मिक धन्यवाद।
वर्णिक अति लघु रूपधारी तिलका छंद में युद्ध के अति विस्तृत भावों का समावेश करते हुए आपने जो वर्णन किया है वह अतुलनीय एवं अद्भुत है। युद्ध के दृश्य को सांगोपांग शब्दों से उकेर दिया है।
इस रचना की आपको ढेरों बधाइयां देती हूँ। हमारे समृद्ध हिंदी साहित्य एवं आप सरीखे रचनाकारों पर गर्व होता है ऐसी रचनाएँ पढ़कर।
“कहती बहना
लिखते रहना
रवि से दमको
जग में चमको”
शुचिता बहन तुम्हारी हृदय खिलाती मोहक प्रतिक्रिया का हृदयतल से धन्यवाद।
कवि के कुल की।
नित ही पुलकी।
शुचिता बहना।
तुम हो गहना।।
आपका आभार व्यक्त करने का साहित्यिक अंदाज भी काबिलेतारीफ है।
धन्यवाद।
धन्यवाद