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तोटक छंद

‘उठ भोर हुई’

उठ भोर हुई बगिया महके।
चिड़िया मदमस्त हुई चहके।।
झट आलस त्याग करो अपना।
तब ही सच हो सबका सपना।।

रथ स्वर्णिम सूरज का चमके।
सतरंग धरा पर आ दमके।।
बल, यौवन, स्वस्थ हवा मिलती।
घर-आँगन में खुशियाँ खिलती।।

धरती, गिरि, अम्बर झूम रहे।
बदरा लहरा कर घूम रहे।।
हर दृश्य लगे अति पावन है।
यह भोर बड़ी मनभावन है।

पट मंदिर-मस्जिद के खुलते।
मृदु कोयल के स्वर हैं घुलते।।
तम भाग गया किरणें बिखरी।
नवजीवन पा धरती निखरी।।
◆◆◆◆◆◆

तोटक छंद विधान – https://kavikul.com/तोटक-छंद-विरह

शुचिता अग्रवाल “शुचिसंदीप”

तिनसुकिया, असम

4 Responses

  1. उठ भोर हुई रच दी शुचिता।
    यह सुंदर सी तुम दी कविता।
    यह तोटक छंद सुवासित है।
    रचना पढ लोग प्रफुल्लित है।

    बहुत प्यारी रचना हुई है।

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