तोटक छंद
‘उठ भोर हुई’
उठ भोर हुई बगिया महके।
चिड़िया मदमस्त हुई चहके।।
झट आलस त्याग करो अपना।
तब ही सच हो सबका सपना।।
रथ स्वर्णिम सूरज का चमके।
सतरंग धरा पर आ दमके।।
बल, यौवन, स्वस्थ हवा मिलती।
घर-आँगन में खुशियाँ खिलती।।
धरती, गिरि, अम्बर झूम रहे।
बदरा लहरा कर घूम रहे।।
हर दृश्य लगे अति पावन है।
यह भोर बड़ी मनभावन है।
पट मंदिर-मस्जिद के खुलते।
मृदु कोयल के स्वर हैं घुलते।।
तम भाग गया किरणें बिखरी।
नवजीवन पा धरती निखरी।।
◆◆◆◆◆◆
तोटक छंद विधान – https://kavikul.com/तोटक-छंद-विरह
शुचिता अग्रवाल “शुचिसंदीप”
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
प्रात:काल की खुशबू फैलाती रचना।
अतिशय आभार आपका।
उठ भोर हुई रच दी शुचिता।
यह सुंदर सी तुम दी कविता।
यह तोटक छंद सुवासित है।
रचना पढ लोग प्रफुल्लित है।
बहुत प्यारी रचना हुई है।
तोटक पर तोटक में ही प्रतिक्रिया पाकर बहुत खुशी हुई। प्रोत्साहन हेतु आभार आपका।