तोमर छंद
“अव्यवस्था”
हर नगर है बदहाल।
अब जरा देख न भाल।।
है व्यवस्था लाचार।
दिख रही चुप सरकार।।
वाहन खड़े हर ओर।
चरते सड़क पर ढोर।।
कुछ बची शर्म न लाज।
हर तरफ जंगल राज।।
मन मौज में कुछ लोग।
हर चीज का उपयोग।।
वे करें निज अनुसार।
बन कर सभी पर भार।।
ये दौड़ अंधी आज।
जा रही दब आवाज।।
आराजकों का शोर।
बस अब दिखाये जोर।।
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तोमर छंद विधान – (मात्रिक छंद परिभाषा)
यह 12 मात्रा का सम मात्रिक छंद है। अंत ताल से आवश्यक। इसकी मात्रा बाँट:- द्विकल-सप्तकल-3 (केवल 21)
(द्विकल में 2 या 11 मान्य तथा सप्तकल का 1222, 2122, 2212,2221 में से कोई भी रूप हो सकता है।)
चार चरण। दो दो समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

परिचय
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
मेरा ब्लॉग:-
बहुत सुंदर सृजन।
अनुराग जी आपकी अनुराग भरी प्रतिक्रिया का आभार।
शानदार रचना
यशस्वी बहुत बहुत धन्यवाद।
आज की अव्यवस्था पर शब्दों का जोरदार प्रहार।
बहुत ही यथार्थ लेखन।
शुचिता बहन इस मधुर टिप्पणी का हार्दिक धन्यवाद।
मुट्ठी भर लोगों की उच्छृंखलता के कारण जगह जगह फैली अव्यवस्था का बहुत सही चित्रण आपने इस कविता में किया है।
आपकी नव उत्साह का संचार करती प्रतिक्रिया का हार्दिक धन्यवाद।