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तोमर छंद

“अव्यवस्था”

हर नगर है बदहाल।
अब जरा देख न भाल।।
है व्यवस्था लाचार।
दिख रही चुप सरकार।।

वाहन खड़े हर ओर।
चरते सड़क पर ढोर।।
कुछ बची शर्म न लाज।
हर तरफ जंगल राज।।

मन मौज में कुछ लोग।
हर चीज का उपयोग।।
वे करें निज अनुसार।
बन कर सभी पर भार।।

ये दौड़ अंधी आज।
जा रही दब आवाज।।
आराजकों का शोर।
बस अब दिखाये जोर।।
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तोमर छंद विधान – (मात्रिक छंद परिभाषा)

यह 12 मात्रा का सम मात्रिक छंद है। अंत ताल से आवश्यक। इसकी मात्रा बाँट:- द्विकल-सप्तकल-3 (केवल 21)
(द्विकल में 2 या 11 मान्य तथा सप्तकल का 1222, 2122, 2212,2221 में से कोई भी रूप हो सकता है।)

चार चरण। दो दो समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

8 Responses

  1. मुट्ठी भर लोगों की उच्छृंखलता के कारण जगह जगह फैली अव्यवस्था का बहुत सही चित्रण आपने इस कविता में किया है।

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