त्रिलोकी छंद
‘शिव आराधना’
बोल-बोल बम बोल,सदा शिव को भजो,
कपट,क्रोध,मद,लोभ,चाल टेढ़ी तजो।
भाव भरो मन माँहि,सोम के नाम के,
मृत्य जगत के कृत्य,कहो किस काम के।
नील कंठ विषधार,सर्प शिव धारते,
नेत्र तीसरा खोल,दुष्ट संहारते।
अजर-अमर शिव नाम,जपत संकट कटे,
हो पुनीत सब काज,दोष विपदा हटे।
हवन कुंड यह देह,भाव समिधा जले,
नयन अश्रु की धार,बहाते ही चले।
सजल नयन के दीप,भक्ति से हों भरे,
भाव भरी यह प्रीत,सफल जीवन करे।
महादेव नटराज,दिव्य प्रभु रूप है,
सृष्टि सृजन के नाथ,जगत के भूप है।
वार मनुज सर्वस्व,परम शिव धाम पे,
तीन लोक के नाथ,एक शिव नाम पे।
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त्रिलोकी छंद विधान (मात्रिक छंद परिभाषा)
यह प्रति पद 21 मात्राओं का सम मात्रिक छंद है जो 11,10 मात्राओं के दो यति खण्डों में विभाजित रहता है।
दो दो पद या चारों पद समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
अठकल + गुरु और लघु, त्रिकल + द्विकल + द्विकल + लघु और गुरु = 11, 10 = 21 मात्राएँ।
(अठकल दो चौकल या 3-3-2 हो सकता है, त्रिकल 21, 12, 111 हो सकता है तथा द्विकल 2 या 11 हो सकता है।)
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
बोल बम बोल बम
वाह
भगवान शिव की अलौकिक महिमा का बखान करती त्रिलोकी छंद की रचना को नमन।
हार्दिक आभार
आपकी उत्साहवर्धक काव्यमयी समीक्षा से लेखन सार्थक हुआ।
आभार आपका।
छंद त्रिलोकी दिव्य, बहन शुचिता रची।
रख विधान भी साथ, बात यह अति जँची।।
शिव शंकर का रूप, छंद में है भरा।
यही जगत में नाम, सभी से है खरा।।
वाह बहुत प्यारी छंद।