देव घनाक्षरी
(सिंहावलोकन के साथ)
भड़क के ऑफिस से, आज फिर सैंया आए,
लगता पड़ी है डाँटें, बॉस की कड़क कड़क।
कड़क गरजते हैं, घर में ये बिजली से,
वहाँ का दिखाए गुस्सा, यहाँ पे फड़क फड़क।
फड़क के बोले शब्द, दिल भेदे तीर जैसे,
छलनी कलेजा हुआ, करता धड़क धड़क,
धड़क बढे है ज्यों ज्यों, आ रहा रुदन भारी,
सुलगे जिया में अब, आग ये भड़क भड़क।।
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देव घनाक्षरी विधान :-
8, 8, 8, 9 पर यति अनिवार्य।
पदान्त हमेशा 3 लघु (1 1 1) आवश्यक। यह पदान्त भी पुनरावृत रूप में जैसे ‘चलत चलत’ रहे तो उत्तम।
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
बहुत ही मजेदार, दमदार घनाक्षरी। बहुत मुश्किल है यह घनाक्षरी लेकिन आपने बहुत ही सरलता से लिख लिया।
उत्कृष्ट लेखन हेतु हार्दिक बधाई आपको।
शुचिता बहन तुम्हारी भावभीनी प्रतिक्रिया का हृदयतल से धन्यवाद।
आपके द्वारा बहुत मजेदार हास्य से भरपूर देव घनाक्षरी पढने को मिली।
आपकी हृदय खिलाती प्रतिक्रिया का हार्दिक धन्यवाद।