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दोधक छंद / बंधु छंद

“आत्म मंथन”

मन्थन रोज करो सब भाई।
दोष दिखे सब ऊपर आई।
जो मन माहिँ भरा विष भारी।
आत्मिक मन्थन देत उघारी।।

खोट विकार मिले यदि कोई।
जान हलाहल है विष सोई।
शुद्ध विवेचन हो तब ता का।
सोच निवारण हो फिर वा का।।

भीतर झाँक जरा अपने में।
क्यों रहते जग को लखने में।।
ये मन घोर विकार भरा है।
किंतु नहीं परवाह जरा है।।

मत्सर, द्वेष रखो न किसी से।
निर्मल भाव रखो सब ही से।
दोष बचे उर माहिँ न काऊ।
सात्विक होवत गात, सुभाऊ।।

वर्णिक छंद परिभाषा)

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दोधक छंद / बंधु छंद विधान –
दोधक छंद जो कि बंधु छंद के नाम से भी जाना जाता है, ११ वर्ण प्रति चरण का वर्णिक छंद है।

“भाभभगाग” इकादश वर्णा।
देवत ‘दोधक’ छंद सुपर्णा।।

“भाभभगाग” = भगण भगण भगण गुरु गुरु
211 211 211 22 = 11 वर्ण। चार चरण, दो दो सम तुकांत।

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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन, ©
तिनसुकिया

4 Responses

  1. जो मनुष्य अपने स्वयं के भीतर झाँक कर अपना निरीक्षण कर सके उससे बड़ा कोई नहीं। बहुत सुंदर कविता।

  2. दोधक सुंदर छंद लिखा है।
    अद्भुत लेखन रूप दिखा है।।
    भाव भरी कविता मनुहारी।
    वर्णिक में लिखना अति भारी।।

    आत्मिक मंथन सार सिखाया।
    मार्ग प्रकाशित एक दिखाया।।
    द्वेष मिटाकर प्रेम बढ़ाओ।
    सीख भरी कविता अपनाओ।।

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