दोधक छंद
“आत्म मंथन”
मन्थन रोज करो सब भाई।
दोष दिखे सब ऊपर आई।
जो मन माहिँ भरा विष भारी।
आत्मिक मन्थन देत उघारी।।
खोट विकार मिले यदि कोई।
जान हलाहल है विष सोई।
शुद्ध विवेचन हो तब ता का।
सोच निवारण हो फिर वा का।।
भीतर झाँक जरा अपने में।
क्यों रहते जग को लखने में।।
ये मन घोर विकार भरा है।
किंतु नहीं परवाह जरा है।।
मत्सर, द्वेष रखो न किसी से।
निर्मल भाव रखो सब ही से।
दोष बचे उर माहिँ न काऊ।
सात्विक होवत गात, सुभाऊ।।
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दोधक छंद / मधु छंद विधान – (वर्णिक छंद परिभाषा)
“भाभभगाग” इकादश वर्णा।
देवत ‘दोधक’ छंद सुपर्णा।।
“भाभभगाग” = भगण भगण भगण गुरु गुरु
211 211 211 22 = 11 वर्ण की वर्णिक छंद।
चार चरण, दो दो सम तुकांत।
यह छंद मधु छंद के नाम से भी जानी जाती है।
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन, ©
तिनसुकिया

परिचय
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
मेरा ब्लॉग:-
जो मनुष्य अपने स्वयं के भीतर झाँक कर अपना निरीक्षण कर सके उससे बड़ा कोई नहीं। बहुत सुंदर कविता।
आपकी टिप्पणी का हृदयतल से धन्यवाद।
दोधक सुंदर छंद लिखा है।
अद्भुत लेखन रूप दिखा है।।
भाव भरी कविता मनुहारी।
वर्णिक में लिखना अति भारी।।
आत्मिक मंथन सार सिखाया।
मार्ग प्रकाशित एक दिखाया।।
द्वेष मिटाकर प्रेम बढ़ाओ।
सीख भरी कविता अपनाओ।।
शुचिता बहन तुम्हारी दोधक छंद में रची मोहक टिप्पणी का हृदयतल से धन्यवाद।
दोधक छंद बड़ी यह न्यारी।
तू रच दी शुचिता अति प्यारी।