दोहा छंद “श्राद्ध-पक्ष”
श्राद्ध पक्ष में दें सभी, पुरखों को सम्मान।
वंदन पितरों का करें, उनका धर सब ध्यान।।
रीत सनातन श्राद्ध है, इस पर हो अभिमान।
श्रद्धा पूरित भाव रख, मानें सभी विधान।।
द्विज भोजन बलिवैश्व से, करें पितर संतुष्ट।
उनके आशीर्वाद से, होते हैं हम पुष्ट।।
पितर लोक में जो बसे, करें सदा उपकार।
बन कृतज्ञ उनके सदा, प्रकट करें आभार।।
हमें सदा मिलता रहे, पितरों का वरदान।
भरे रहें भंडार सब, हों हम आयुष्मान।।
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
श्राद्ध पक्ष के महत्व को दर्शाते अति उत्तम दोहे लिखे हैं आपने भैया।
हमारी सनातन परंपरा के नियम अनुकरणीय है। आपने पितरों के प्रति कृतज्ञ होते हुए उन्हें रीति रिवाज से श्राद्ध करके संतुष्ट करने पर अच्छे विचार प्रकट किए हैं।
शुचिता बहन तुम्हारी टिप्पणी का हार्दिक धन्यवाद। हर सनातन धर्मी को हमारी प्राचीन परंपराओं पर गर्व होना चाहिए।
श्राद्ध पक्ष में हमारे पितृगणों को जल भोजन देना सनातन परंपरा है। इस परंपरा के प्रति जागरुकता उत्पन्न करते सुंदर दोहे।
आपकी हृदय खिलाती प्रतिक्रिया का बहुत बहुत धन्यवाद। हर भारतवासी को सनातन परंपराओं पर गर्व होना चाहिए।