दोही छंद ‘माँ का आशीष’
तम दूर रहे घर से सदा, उजियारा हो तेज।
जिस घर में बेटी जा रही, हो फूलों की सेज।।
घर मात-पिता का छोड़कर, अपनाओ ससुराल।
कुल मान सदा रखना बड़ा, जीवन हो खुशहाल।।
सुख सहज सकल तुमको मिले, लक्ष्मी रहे विराज।
हों सास-श्वसुर माँ-बाप सम, पिय हिय करना राज।।
मन भाव स्वच्छ पावन रहे, मृदु वाणी अनमोल।
जब क्रोध निकट आवे तभी, निज मन माँहि टटोल।।
घृत दधि पय की नदियाँ बहे, दान धर्म हों रीत।
शुचि राम नाम धुन में रमे, जीवनमय संगीत।।
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दोही छंद विधान- (मात्रिक छंद परिभाषा)
दोही, दोहे की ही प्रजाति का एक द्विपदी छंद है। दोही अर्द्धसम मात्रिक छंद है। यह द्विपदी छंद है जिसके प्रति पद में 26 मात्रा होती है।प्रत्येक पद 15, 11 मात्रा के दो यति खण्डों में विभाजित रहता है। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में १५-१५ मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में ११-११ मात्राएँ होती हैं।सम चरणों का अंत गुरु लघु मात्रा से होना आवश्यक होता है।दूसरे और चौथे चरण यानी सम चरणों का समतुकान्त होना आवश्यक है।
विषम चरण — कुल 15 मात्रा (मात्रा बाँट =द्विकल + अठकल + द्विकल + लघु + द्विकल = 2 + 8 +2 +1 +2 = 15 मात्रा)
सम चरण — कुल 11 मात्रा (मात्रा बाँट = अठकल + ताल यानी गुरु+लघु)
दूसरे शब्दों में दोहे के पद के प्रारंभ में द्विकल जोड़ देने से दोही छंद बन जाता है, बाकी सब कुछ दोहे वाला ही विधान रहता है।
अठकल यानी 8 में दो चौकल (4+4) या 3-3-2 हो सकते हैं। चौकल और अठकल के नियम अनुपालनीय हैं।)
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शुचिता अग्रवाल,’शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
Amazing lines.
धन्यवाद
बहुत अच्छी बातें लिखी है आपने।
धन्यवाद आपका
आपने इस रचना के माध्यम से हर बेटी को बहुत ही प्यारी सीख दी है।
हार्दिक आभार आपका।
प्यारी दोही शुचिता रची, भाव हृदय के फेंट।
बेटी का घर कैसे बसे, सीख भरी ये भेंट।।
बहुत सुंदर दोही।
उत्साहवर्धन हेतु आपकी काव्यमयी टिप्पणी ने लेखन सफल कर दिया ।
दिल से आभार।