निधि छंद
“सुख-सार”
उनका दे साथ।
जो लोग अनाथ।।
ले विपदा माथ।
थामो तुम हाथ।।
दुखियों के कष्ट।
कर दो तुम नष्ट।।
नित बोलो स्पष्ट।
मत होना भ्रष्ट।।
मन में लो धार।
अच्छा व्यवहार।।
मत मानो हार।
दुख कर स्वीकार।।
जग की ये रीत।
सुख में सब मीत।।
दुख से कर प्रीत।
लो जग को जीत।।
जीवन का भार।
चलना दिन चार।।
अटके मझधार।
कैसे हो पार।।
कलुष घटा घोर।
तम चारों ओर।।
दिखता नहिं छोर।
कब होगी भोर।।
आशा नहिं छोड़।
भाग न मुख मोड़।।
साधन सब जोड़।
निकलेगा तोड़।।
सच्ची पहचान।
बन जा इंसान।।
जग से पा मान।
ये सुख की खान।।
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निधि छंद विधान – (मात्रिक छंद परिभाषा)
यह नौ मात्रा का सम मात्रिक चार चरणों का छंद है। इसका चरणान्त ताल यानी गुरु लघु से होना आवश्यक है। बची हुई 6 मात्राएँ छक्कल होती हैं। तुकांतता दो दो चरण या चारों चरणों में समान रखी जाती है।
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

परिचय
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
मेरा ब्लॉग:-
गजब लेखन आपका। प्रणाम आपको
आपके कामेंट का हार्दिक धन्यवाद।
बहुत सुंदर रचना
यशस्वी तुम्हारे कामेंट का बहुत धन्यवाद।
सुखी जीवन की सभी मूल बातों का आपने सार लिख दिया है।
अनुकरणीय रचना।
शुचिता बहन इस मोहक प्रतिक्रिया का हृदयतल से धन्यवाद।
रचित बासुदेव।
प्यारी सी सेव।।
मीठी ज्यों कंद।
मोहक निधि छंद।।
बहुत प्यारी रचना।
मीठा कामेंट।
अनुपम ये भेंट।।
दूँ मैं आभार।
कर लें स्वीकार।।
वाहः