निश्चल छंद
‘ऋतु शीत’
श्वेत अश्व पर चढ़कर आई, फिर ऋतु शीत।
स्वागत करने नवल भोर का, आये मीत।।
गिरि शिखरों पर धवल ओढ़नी, दृश्य पुनीत।
पवन प्रवाहित होकर गाये, मधुरिम गीत।।
शिशिर आगमन पर रिमझिम सी, है बरसात।
अगुवाई कर स्वच्छ करे ज्यूँ, वसुधा गात।।
प्रेम प्रदर्शित करती मिहिका, किसलय चूम।।
पुष्प नवेले ऋतु अभिवादन, करते झूम।
रजत वृष्टि सम हिम कण बरसे, है सुखसार।
ग्रीष्म विदाई करके नाचे, सब नर-नार।।
दिखे काँच सम ताल सरोवर, अनुपम रूप।
उस पर हीरक की छवि देती, उजली धूप।।
होता है आतिथ्य चार दिन, फिर है रोष।
शरद सुंदरी में दिखते हैं, अगणित दोष।।
घिरा कोहरा अविरत ठिठुरन, कम्पित देह।
छूमंतर हो जाता पल में, यह ऋतु नेह।।
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निश्चल छंद विधान-
निश्चल छंद 23 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।
यह 16 और 7 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहती है। दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2222 2222, 22S1
चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है, किंतु अंत गुरु लघु अनिवार्य है।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
बहुत सुंदर छंद बद्ध सृजन।
अतिशय आभार आपका।
शुचिता बहन निश्चल छंद में शरद ऋतु की ठिठुरन भरती रचना।
हार्दिक आभार