नील छंद / अश्वगति छंद
वे मन-भावन प्रीत लगा कर छोड़ चले।
खावन दौड़त रात भयानक आग जले।।
पावन सावन बीत गया अब हाय सखी।
आवन की धुन में उन के मन धीर रखी।।
वर्षण स्वाति लखै जिमि चातक धीर धरे।
त्यों मन व्याकुल साजन आ कब पीर हरे।।
आकुल भू कब अंबर से जल धार बहे।
ये मन आतुर हो पिय का वनवास सहे।।
मोर चकोर अकारण शोर मचावत है।
बागन की छवि जी अब और जलावत है।।
ये बरषा विरहानल को भड़कावत है।
गीत नये उनके मन को न सुहावत है।।
कोयल कूक लगे अब वायस काँव मुझे।
पावस के इस मौसम से नहिं प्यास बुझे।।
और बिछोह बचा कितना अब शेष पिया।
नेह-तृषा अब शांत करो लगता न जिया।।
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नील छंद / अश्वगति छंद विधान –
नील छंद जो कि अश्वगति छंद के नाम से भी जाना जाता है, १६ वर्ण प्रति चरण का वर्णिक छंद है।
“भा” गण पांच रखें इक साथ व “गा” तब दें।
‘नील’ सुछंदजु षोडस आखर की रच लें।।
“भा” गण पांच रखें इक साथ व “गा”= 5 भगण+गुरु
(211×5 + गुरु) = 16वर्ण की वर्णिक छंद।
चार चरण, दो दो या चारों चरण समतुकांत।*******************
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
नील छंद में बहुत ही मनभावन रचना हुई है।
आपकी प्रतिक्रिया का हृदयतल से आभार।
षोडस आखर नील सुछंद सुशोभित है।
पाठक वृन्द विभोर इसे पढ़ मोहित है।
व्याकुलता मन की उमड़ी सब शब्द खरे।
मुश्किल वर्णिक छंद मनोहर भाव भरे।।
वाह शुचिता बहन प्रतिक्रिया स्वरूप तुम्हारी नील छंद की ही चतुष्पदी हृदय के तारों को झंकृत कर रही है।
अद्भुत छंद व भाव भरा नवगान हुआ
नील सुछंद स्वरूप सदा सनमान हुआ।
क्या कहने, वसुदेव सदा शुभ छंद कहो
वृष्टि रसान्वित से बस आप सुधार बहो।।
प्रतिक्रिया का हृदय से अभिनंदन।