पंचचामर छंद “हनुमान स्तुति”
उपासना करें सभी, महाबली कपीश की,
विराट दिव्य रूप की, दयानिधान ईश की।
कराल काल जाल से, प्रभो उबार लीजिये,
अपार भक्ति दान की, कृपा सदैव कीजिये।
प्रदीप्त बाल सूर्य को, मुखारविंद में लिया,
पराक्रमी अबोध ने, डरा सुरेन्द्र को दिया।
किया प्रहार इंद्र ने, अचेत केशरी हुये,
प्रकोप वायु देव का, अधीर देवता हुये।
प्रसंग राम भक्त के, अतुल्य है, महान है,
विशुद्ध धर्म-कर्म के, अनेक ही बखान है।
अजेय शौर्य भक्ति का, प्रतीक आप ही बने,
प्रबुद्ध ज्ञान आपमें, समृद्ध धाम हैं घने।
मृदंग-शंखनाद ले, सुकंठ प्रार्थना करें,
विभोर भव्य आरती, अखण्ड दीप को धरें।
नमो नमामि वंदना, विराजमान आप हों,
सुबुद्धि, ज्ञान, शक्ति दें, अखंड नाम-जाप हों।
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पंंचचामर छंद / नाराच छंद विधान की लिंक :- पंंचचामर छंद विधान
शुचिता अग्रवाल,’शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
शुचिता बहन पंंचचामर छंद में बहुत प्यारी हनुमत वंदना।
हार्दिक आभार भैया।
हार्दिक आभार
जय हनुमान। हनुमान जी की बहुत ओज पूर्ण वंदना।