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पद्धरि छंद / पज्झटिका छंद

करके विचार कर ले उपाय।
प्राणी मत रह मन को भ्रमाय।।
जीवन का बस यह एक सार।
जीना केवल है दिवस चार।।

इस अवसर का कर सदुपयोग।
त्यज तन मन से सब तुच्छ भोग।।
सदकर्मों से हो कर विहीन।
मत कर लेना तू मन मलीन।।

अपना झूठा कर मत प्रचार।
बन दुखियों के प्रति तू उदार।।
रह आत्म प्रशंसा में न लीन।
जी सदविचार में बन प्रवीन।।

अपने जन के प्रति पाल मोह।
करना न कभी तू जाति-द्रोह।।
गहना उनका तू नित्य हाथ।
जो जन्म-बंध से साथ साथ।।

रख गर्व मनाना सकल पर्व।
रुचिकर हों अपनी रीति सर्व।।
निज परंपराएँ श्रेष्ठ जान।
ऊँची उनकी रख आन बान।।

तुझको स्वधर्म पर हो घमंड।
बन जा संस्कृति का मेरुदंड।।
ये उच्च भाव नित रख सँभाल।
हो ‘नमन’ प्रखर भारत विशाल।।
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पद्धरि छंद विधान –

पद्धरि छंद 16 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। यह संस्कारी जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। इन 16 मात्राओं की मात्रा बाँट:- द्विकल + अठकल + द्विकल + 1S1 (जगण) है। द्विकल में 2 या 11 रख सकते हैं तथा अठकल में 4 4 या 3 3 2 रख सकते हैं। इस छंद का अंत जगण से होना अनिवार्य है।

पज्झटिका छंद विधान –

प्राकृत पैंगलम्, केशव दास की छंद माला इत्यादि ग्रंथों के अनुसार इस छंद को ही पज्झटिका छंद माना गया है। परंतु छंद प्रभाकर में भानुकवि ने पज्झटिका छंद को अलग छंद माना है। पज्झटिका छंद की मात्रा बाँट 8 S 4 S बताई गयी है। साथ ही इसके किसी भी चौकल में जगण का प्रयोग सर्वथा वर्जित है। पज्झटिका छंद की एक चतुष्पदी देखें:-

“भोले की महिमा है न्यारी।
औघड़ दानी हैं भय हारी।।
शंकर काशी के तुम नाथा।
छंद रचूँ अरु गाऊँ गाथा।।”

लिंक:- मात्रिक छंद परिभाषा
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

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