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पद्मावती छंद

“दीपोत्सव”

दीपोत्सव बीता, पर्व पुनीता, जो खुशियाँ लेकर आया।
आनंदित मन का, अपनेपन का, उजियारा जग में छाया।।
शुभ मंगलदायक, अति सुखदायक, त्योंहारों के रस न्यारे।
उत्सव ये सारे, बने हमारे, जीवन के गहने प्यारे।।

मन का तम हरती, रोशन करती, रौनक जीवन में लाती।
जगमग दीवाली, दे खुशहाली, धरती को अति सरसाती।।
लक्ष्मी घर आती, चाव चढ़ाती, नव जीवन फिर मिलता है।
आनंद कोष का, नवल जोश का, शुचि प्रसून सा खिलता है।।

मानव चित चंचल, प्रेम दृगंचल, उत्सवधर्मी होता है।
सुख नव नित चाहे, मन लहराये, बीज खुशी के बोता है।।
पल आते रहते, जाते रहते, अद्भुत जग की माया है।
जब दुख जाता है, सुख आता है, धूप बाद ही छाया है।।

दीपक से सीखा, त्याग सरीखा, जीवन पर सुखदायी हो।
सब अंधकार की, दुराचार की, मन से सदा विदायी हो।।
रख हरदम आशा, छोड़ निराशा, पर्वों से हमने जाना।
सुखमय दीवाली, फिर खुशहाली, आएगी हमने माना।।
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पद्मावती छंद विधान- (मात्रिक छंद परिभाषा) <– लिंक

पद्मावती छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जिसमें क्रमशः 10, 8, 14 मात्रा पर यति आवश्यक है।
प्रथम दो अंतर्यतियों में समतुकांतता आवश्यक है।
चार चरणों के इस छंद में दो दो या चारों चरण समतुकांत होते हैं।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
द्विकल + अठकल, अठकल, अठकल + चौकल + दीर्घ वर्ण (S)
2 2222, 2222, 2222 22 S = 10+ 8+ 14 = 32 मात्रा।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

4 Responses

  1. दीवाली त्योहार सबके जीवन में खुशियों का आलोक छिटकाने वाला है। बहुत सुंदर रचना।

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