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पवन छंद “श्याम शरण”

श्याम सलोने, हृदय बसत है।
दर्श बिना ये, मन तरसत है।।
भक्ति नाथ दें, कमल चरण की।
शक्ति मुझे दें, अभय शरण की।।

पातक मैं तो, जनम जनम का।
मैं नहिं जानूँ, मरम धरम का।।
मैं अब आया, विकल हृदय ले।
श्याम बिहारी, हर भव भय ले।।

मोहन घूमे, जिन गलियन में।
वेणु बजाई, जिस जिस वन में।।
चूम रहा वे, सब पथ ब्रज के।
माथ धरूँ मैं, कण उस रज के।।

हीन बना मैं, सब कुछ बिसरा।
दीन बना मैं, दर पर पसरा।।
भीख कृपा की, अब नटवर दे।
वृष्टि दया की, सर पर कर दे।।
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पवन छंद विधान –

“भातनसा” से, ‘पवन’ सजति है।
पाँच व सप्ता, वरणन यति है।।

“भातनसा” = भगण तगण नगण सगण।
211   22,1  111  112 = 12 वर्ण का वर्णिक छंद, यति 5 और 7 वर्ण पर,
चार पद दो दो समतुकांत।

लिंक:- वर्णिक छंद परिभाषा
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

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